Dr. K.Vikram Rao : पत्रकारिता के शिखर पुरुष को श्रद्धांजलि
22वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले में डॉ. के. विक्रम राव को श्रद्धांजलि, जहाँ उनके पत्रकारिता और लेखन के योगदान को याद किया गया।

परिचर्चा की शुरुआत इस विचार से हुई कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता, संस्कृति और आत्मा की पहचान है। डॉ. राव की पत्नी और पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. के. सुधा राव ने अपने और डॉ. राव के सात दशकों के जीवन का परिचय दिया, जिसमें उनके जीवन के संघर्ष, प्रेम और पत्रकारिता के प्रति उनका समर्पण झलक रहा था।
प्रमुख वक्ता अनिल रस्तोगी ने डॉ. राव के साथ अपनी 1978 से चली आ रही दोस्ती को याद किया। उन्होंने कहा कि डॉ. राव फिल्मों के बारे में बहुत कुछ जानते थे और उन्होंने उनके कई नाटकों की समीक्षा भी लिखी। "उनके लेख पढ़कर मुझे हमेशा आश्चर्य होता था कि कोई इतना विद्वान कैसे हो सकता है। बुंदेलखंड और गुजरात अकाल पर उनके लेख ऐतिहासिक हैं," रस्तोगी ने भावुक होते हुए कहा।
उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त पी.एन. द्विवेदी ने डॉ. राव को अपने "पितृ स्वरूप" बताया। उन्होंने कहा कि हर पत्रकार में एक साहित्यकार छिपा होता है, और डॉ. राव ने हिंदी को एक बहुआयामी रूप देकर इसे साबित किया। वहीं, दिलीप अग्निहोत्री ने डॉ. राव को "पत्रकारिता का गहन अध्ययन" और स्वयं में एक "संस्थान" बताया। उन्होंने कहा, "जब भी कोई पत्रकार विश्लेषण लिखता है, वह एक साहित्यकार बन जाता है, और वाक्य रचना व शब्दों का सही प्रयोग करना डॉ. राव को बखूबी आता था।"
संपादक सुधीर मिश्रा ने डॉ. राव की तात्कालिक विषयों पर ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ लिखने की अनूठी शैली को याद किया। उन्होंने यह भी बताया कि डॉ. राव कैसे युवा पत्रकारों को फोन करके उनके अच्छे लेखों के लिए बधाई देते थे और सुझाव भी देते थे, जिससे उन्हें नई ऊर्जा मिलती थी। वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह ने कहा कि डॉ. राव को ईश्वर ने एक अलग दृष्टि दी थी, जिससे वे किसी भी विषय को अनोखे नजरिए से देखते थे।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव ने डॉ. राव के 62 साल के पत्रकारिता अनुभव को सीखने का एक महासागर बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. राव ने पत्रकारिता की साधना की, यही वजह थी कि वह जीवन के अंतिम दिन तक लिखते रहे और उसे उच्चतम शिखर पर ले गए। अंत में, वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा ने बताया कि डॉ. राव हमेशा अगली पीढ़ी के पत्रकारों से जुड़ते थे और उन्हें प्रेरित करते थे। उन्होंने कहा, "आईपीएस की नौकरी छोड़कर उन्होंने यह साबित किया कि एक पत्रकार सबसे बड़ा होता है। उनकी रिसर्च की पूरी दुनिया में प्रशंसा होती है।"
परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार शिल्पी सेन ने किया, जिन्होंने डॉ. राव की प्रसिद्ध टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए नई पीढ़ी के पत्रकारों को वर्तनी और व्याकरण के सही प्रयोग के प्रति जागरूक करने के उनके प्रयासों की सराहना की। कार्यक्रम का समापन वरिष्ठ पत्रकार और संपादक शिवशरण सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। यह कार्यक्रम न केवल डॉ. राव को एक श्रद्धांजलि थी, बल्कि हिंदी पत्रकारिता के भविष्य के लिए एक प्रेरणा भी थी।
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