अंबेडकरनगर: हाउस टैक्स वृद्धि पर बीजेपी में ही फूट, जिला महामंत्री ने चेयरमैन के खिलाफ खोला मोर्चा

अंबेडकरनगर की अकबरपुर नगर पालिका में हाउस टैक्स वृद्धि पर बीजेपी के जिला महामंत्री ने अपनी ही पार्टी के चेयरमैन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

Aug 19, 2025 - 22:12
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अंबेडकरनगर: हाउस टैक्स वृद्धि पर बीजेपी में ही फूट, जिला महामंत्री ने चेयरमैन के खिलाफ खोला मोर्चा

अंबेडकरनगर :अंबेडकरनगर की अकबरपुर नगर पालिका में हाउस टैक्स में हुई भारी वृद्धि ने सत्तारूढ़ बीजेपी के भीतर ही एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। नगर पालिका चेयरमैन चंद्र प्रकाश वर्मा खुद बीजेपी से हैं, लेकिन उनकी ही पार्टी के जिला महामंत्री राम शब्द यादव ने इस मनमानी टैक्स वृद्धि के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है। यह घटनाक्रम न केवल जनता के बीच असंतोष बढ़ा रहा है, बल्कि बीजेपी की आंतरिक खींचतान को भी उजागर कर रहा है।

मंगलवार को राम शब्द यादव ने इस वृद्धि को पूरी तरह से अवैध बताते हुए अधिशासी अभियंता को एक ज्ञापन सौंपा। उनका आरोप है कि नगर पालिका ने टैक्स वसूली में नियमों का उल्लंघन किया है। सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि टैक्स का सर्वे रजिस्टर वर्ष 2021 में बना, लेकिन टैक्स की वसूली 2018 से की जा रही है। इसका सीधा मतलब है कि जनता पर तीन साल का "बकाया बोझ" जबरन थोपा जा रहा है।

राम शब्द यादव ने स्पष्ट किया कि नगर पालिका अधिनियम के अनुसार, बोर्ड की सहमति से एक बार में अधिकतम 30% तक की ही वृद्धि की जा सकती है, जबकि यहां मनमाने ढंग से वसूली की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह "गैरकानूनी टैक्स डकैती" है और अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया तो वे सड़क पर उतरकर जन आंदोलन करेंगे। उन्होंने कुछ और महत्वपूर्ण मांगें भी रखीं, जैसे:

  • टैक्स रसीद पर पालिका की मुहर और कर्मचारी का हस्ताक्षर अनिवार्य किया जाए।
  • सरकारी भूमि पर बने मकानों को टैक्स मुक्त किया जाए।
  • अनावासीय भवनों पर 2% की छूट दी जाए।

यह पूरा घटनाक्रम राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। जब पार्टी का एक प्रमुख पदाधिकारी अपनी ही पार्टी के चेयरमैन पर आरोप लगा रहा है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या बीजेपी भीतर ही भीतर फूट का शिकार हो रही है? जनता भी इस स्थिति से परेशान है, क्योंकि पालिका की मनमानी और पार्टी की आंतरिक कलह, दोनों का खामियाजा आखिर में उन्हीं की जेब पर भारी पड़ रहा है।

यह विवाद एक बार फिर इस बात को साबित करता है कि हाउस टैक्स सिर्फ राजस्व का मामला नहीं, बल्कि एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा भी है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि अगर जनता की भावनाओं को अनदेखा कर कोई भी निर्णय लिया जाता है तो इसका विरोध न केवल विपक्ष बल्कि स्वयं के खेमे से भी हो सकता है।

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