आखिर क्यों रायगढ़ किले का नाम बदलकर ‘इस्लामगढ़’ रख दिया ?
क्या आप जानते हैं कि 19 अक्टूबर 1689 को रायगढ़ किले का नाम बदलकर ‘इस्लामगढ़’ रख दिया गया था?
क्यों हुआ ऐसा? कौन-सी ताकतें इस गौरवशाली दुर्ग पर काबिज हो गईं? और आखिर दिवाली से इस किले का क्या संबंध है?
भारत के इतिहास में कई ऐसे किले हैं जो केवल पत्थरों से नहीं, बल्कि वीरता, स्वाभिमान और संघर्ष की कहानियों से बने हैं। उन्हीं में से एक है रायगढ़ किला — छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंद स्वराज्य का गौरव। चलिए, इतिहास के पन्नों में उतरते हैं और जानते हैं इस रहस्यमयी कहानी को।
जब शिवाजी ने देखा एक सपनों का किला
साल था 1656 से कुछ पहले का। शिवाजी महाराज ने जब मुगलों और आदिलशाही सल्तनत को धूल चटाई, तो उनके मन में एक विचार जन्मा — “हिंद स्वराज्य का केंद्र एक ऐसी जगह होनी चाहिए, जहाँ से कोई दुश्मन न टिक सके।”
तब उनकी नजर पड़ी सह्याद्री पर्वतों की ऊँचाई पर बने एक किले पर — रायगढ़ पर। यह किला पश्चिमी भारत के उत्तरी कोंकण क्षेत्र में स्थित था और उसकी स्थिति इतनी दुर्गम थी कि वहाँ पहुँचना आसान नहीं था। शिवाजी महाराज ने चंद्ररावजी को हराकर इस किले पर अधिकार जमाया और रायगढ़ को बनाया अपने स्वराज्य की नई राजधानी।
रायरी से रायगढ़ तक – शिवाजी की राजधानी का जन्म
इस किले को पहले ‘रायरी’ कहा जाता था। पर जब शिवाजी महाराज ने इसे अपनाया, तो इसका नाम रखा गया ‘रायगढ़’, यानी “राजाओं का किला”। उन्होंने इसका जीर्णोद्धार कराया, विशाल दीवारें बनवाईं और इसे अभेद्य किले में तब्दील किया। यहाँ तैनात हुए थे वीर सैनिक, तोपखाने और रणनीतिक दीवारें — ताकि कोई भी आक्रमणकारी इस किले को छू तक न सके। और फिर आया साल 1662, जब शिवाजी ने रायगढ़ को अपने हिंदवी स्वराज्य की राजधानी घोषित किया।
दिवाली और रायगढ़ किला – एक अनोखा संबंध
बहुत कम लोग जानते हैं कि शिवाजी महाराज ने रायगढ़ किले के निर्माण की शुरुआत दिवाली के दिन की थी। इसलिए आज भी महाराष्ट्र में दिवाली के अवसर पर बच्चे “मिट्टी के किले” बनाते हैं — यह उसी परंपरा की याद है।
शिवाजी के समय, रायगढ़ की दीवारों से दिवाली की रात तोपों की आवाजें गूंजती थीं — यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की गर्जना थी।
रायगढ़ का राज्याभिषेक – जब शिवाजी बने छत्रपति
6 जून 1674 — इतिहास का वह दिन जब रायगढ़ किले में हुआ एक भव्य राज्याभिषेक समारोह। वाराणसी से आए पंडित गंगा भट्ट ने शास्त्रोक्त विधि से शिवाजी का अभिषेक किया।
गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी — सातों पवित्र नदियों के जल से शिवाजी के सिर पर स्नान कराया गया।
उन्हें दी गई उपाधियाँ — “शककर्ता” (नए युग के संस्थापक) और “छत्रपति” (राजछत्र के स्वामी)। यहीं से मराठा साम्राज्य का नया अध्याय शुरू हुआ।
हिंदू धर्म के रक्षक की उपाधि और रायगढ़ का वैभव
शिवाजी महाराज ने रायगढ़ को न केवल राजधानी बनाया, बल्कि यहीं ‘हिंदव धर्मोद्धारक’ (हिंदू धर्म के रक्षक) की उपाधि भी धारण की। कहा जाता है, रायगढ़ किले तक पहुँचने के लिए 1,450 सीढ़ियाँ थीं — आज जहाँ सैलानी रोपवे से जाते हैं।
यहाँ ‘गंगा सागर झील’, ‘महा दरवाजा’, और ‘नागरखाना दरवाजा’ जैसे भव्य निर्माण आज भी शिवाजी की योजना और स्थापत्य-कला के साक्षी हैं।
हिरकणी बुरुज और 300 महल – एक स्थापत्य चमत्कार
किले के भीतर था ‘हिरकणी बुरुज’, जो एक ऊँची खड़ी चट्टान पर बना है। कहा जाता है, किले में 300 से अधिक महल और 84 कुएँ थे। इसकी बनावट इतनी मजबूत थी कि यह न केवल प्राकृतिक खतरों से, बल्कि किसी भी दुश्मन के हमले से सुरक्षित रहता था।
जब मुगल फौजें भी हार गईं रायगढ़ से
शिवाजी महाराज के रहते मुगल कभी रायगढ़ को छू तक नहीं पाए। लेकिन उनके निधन के 15 साल बाद हालात बदले। साल था 1689, मुगल सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ पर चढ़ाई की और मराठों के तीसरे छत्रपति राजाराम भोंसले प्रथम की सेना को हरा दिया।
औरंगज़ेब ने विजय के बाद रायगढ़ का नाम बदलकर रख दिया — ‘इस्लामगढ़’।
यहीं से एक गौरवशाली किले के नाम पर इतिहास की कालिख लग गई।
अंग्रेजों के दौर में – जब रायगढ़ बना “पूर्व का जिब्राल्टर”
1707 के बाद फतेह खान ने इस किले पर राज किया, फिर मराठों ने दोबारा कब्जा पाया।
1818 में अंग्रेजों ने तोपों की बौछार के बाद इसे हड़प लिया। लूटपाट के बाद उन्होंने इस किले को “पूर्व का जिब्राल्टर” कहा — क्योंकि इसकी बनावट यूरोप के मशहूर रॉक जिब्राल्टर जैसी ठोस और अभेद्य थी।
समुद्री हमलों से बचाने वाला सिंधुदुर्ग किला
शिवाजी महाराज ने केवल रायगढ़ ही नहीं, बल्कि समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए सिंधुदुर्ग किला भी बनवाया। 25 नवंबर 1664 को रखी गई इस किले की नींव ने पुर्तगालियों, अंग्रेजों और समुद्री लुटेरों के दाँत खट्टे कर दिए। तीन साल में बना यह किला 3,000 मजदूरों के परिश्रम का प्रतीक है।
शिवाजी की गुरिल्ला सेना – युद्ध की कला में बेजोड़
लेखक डेनिस किनकैड ने अपनी किताब “द ग्रैंड रिबेल” में लिखा है — शिवाजी की सेना पहाड़ों की तरह ही तेज और अडिग थी। उनकी गुरिल्ला रणनीति — अचानक हमला, फिर दुश्मन के समझने से पहले गायब हो जाना। वे रात में चुपके से उतरते, हमला करते और पहाड़ों में लौट जाते।
तोपखाना न होते हुए भी, मराठों की तलवारें और रणनीति मुगलों को नाकाम कर देतीं।
रायगढ़ – आज भी गर्व और प्रेरणा का प्रतीक
रायगढ़ सिर्फ एक किला नहीं, यह उस हिंद स्वराज्य की नींव है जिसने भारत को आत्मगौरव सिखाया।
यहाँ की हर ईंट, हर दीवार, हर सीढ़ी, शिवाजी के साहस की कहानी कहती है।
आज भले ही इतिहास में इस किले का नाम “इस्लामगढ़” लिखा गया, पर जनता के दिलों में यह आज भी रायगढ़ — छत्रपति का गौरव है।
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