प्रयागराज में गूंजी सूफी संत की इबादत: हजरत मौलाना शाह सिकंदर अली के 151वें उर्स का भव्य आगाज़

प्रयागराज में हजरत मौलाना शाह सिकंदर अली का 151वां उर्स शुरू। दो दिवसीय आयोजन में देशभर से जायरीन शामिल हो रहे हैं।

Sep 6, 2025 - 18:34
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प्रयागराज में गूंजी सूफी संत की इबादत: हजरत मौलाना शाह सिकंदर अली के 151वें उर्स का भव्य आगाज़

(आनंदी मेल ब्यूरो )

प्रयागराज: जनपद से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भुलई का पूरा, फुलपुर, एक बार फिर आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र में तब्दील हो गया है। यहां स्थित हजरत ख्वाजा कुत्बे आलम सैय्यद मौलाना शाह सिकंदर अली चिश्ती नियाजी मस्कीनी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर सालाना उर्स का दो दिवसीय आयोजन पूरे शान-शौकत के साथ शुरू हो गया है। यह सूफी परंपरा और गंगा-जमुनी तहजीब का एक अनूठा संगम है, जहां दूर-दराज से आए जायरीनों की भीड़ ने दरगाह परिसर को एक विशेष रौनक प्रदान की है।

यह उर्स हजरत शाह सिकंदर अली रहमतुल्लाह अलैह का 151वां सालाना आयोजन है, जो उनकी रूहानी विरासत और लोगों के दिलों में उनके प्रति अटूट श्रद्धा को दर्शाता है। उर्स के पहले दिन की शुरुआत 14 रबीउल अव्वल शरीफ 1447 हिजरी (7 सितंबर, रविवार) को सुबह 9 बजे से हुई। इस दौरान जायरीनों को जियारत-ए-मुए मुबारक (पवित्र बाल) और अन्य तबरुकात (पवित्र अवशेष) की जियारत कराई गई, जिससे लोगों की आस्था और मजबूत हुई।

दिन में नमाज-ए-असर के बाद मजार-ए-शरीफ को गुस्ल देने की रस्म अदा की गई। यह एक पवित्र रस्म है जिसमें दरगाह को गुलाबजल और इत्र से धोया जाता है। इसके बाद फातिहाख्वानी हुई, जिसमें सूफी संत के प्रति सम्मान और दुआएं पेश की गईं। शाम होते ही दरगाह परिसर में महफ़िल-ए-समा (कव्वाली) का आयोजन हुआ। कव्वालों ने अपनी रूहानी आवाज़ से ऐसा समां बांधा कि हर कोई भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा। कव्वाली के बाद उर्स की सबसे महत्वपूर्ण रस्म, चादरपोशी (गागर) अदा की गई। यह रस्म दरगाह के सज्जादानशीन हजरत सैय्यद सदरूल हसन की मौजूदगी में संपन्न हुई, जिसने इस कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ा दिया।

उर्स का दूसरा दिन, 15 रबीउल अव्वल शरीफ 1447 हिजरी (8 सितंबर, सोमवार), भी उतना ही खास है। नमाज-ए-फज्र के बाद कुरानख्वानी का आयोजन होगा, जिसके बाद एक और महफ़िल-ए-समा होगी। दोपहर में, नमाज-ए-जुहर के बाद कुल शरीफ की रस्म अदा की जाएगी, जो इस उर्स का समापन होगा। कुल शरीफ के बाद जायरीनों के लिए लंगर-ए-ताआम (सामुदायिक भोजन) का कार्यक्रम होगा, जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो आपसी भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक है।

इस दो दिवसीय आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए खानकाह से जुड़े सपा युवा नेता मकबूल अहमद हाशमी ने बताया कि यह उर्स सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जहां प्रेम, शांति और आपसी सद्भाव का संदेश दिया जाता है। उन्होंने कहा कि हजरत शाह सिकंदर अली की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और उनका उर्स इन मूल्यों को जीवित रखता है। उर्स में उमड़ी भक्तों की भीड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सूफी संतों का स्थान लोगों के दिलों में हमेशा अमर रहता है।

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