जयशंकर का रूस दौरा: रणनीतिक संबंधों को मजबूती देने की दिशा में एक कदम
जयशंकर ने रूसी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने व्यापार असंतुलन और रणनीतिक साझेदारी पर जोर दिया।

डॉ. जयशंकर ने 20 अगस्त को व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के 26वें सत्र की सह-अध्यक्षता की। उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार में हुई असाधारण वृद्धि को उजागर किया, जो 2021 में 13 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 68 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। हालाँकि, उन्होंने इस तीव्र वृद्धि के साथ-साथ बढ़ते व्यापार असंतुलन पर भी चिंता व्यक्त की। जयशंकर ने इस असंतुलन को नौ गुना बढ़ने की बात कही और इसे ठीक करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आयोग के कार्य को सुदृढ़ करने के लिए कई उपायों का प्रस्ताव रखा, जैसे मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करना, मध्यावधि समीक्षा आयोजित करना और व्यावसायिक मंचों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करना।
बाद में, विदेश मंत्री ने प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव के साथ भारत-रूस व्यावसायिक मंच में भाग लिया। इस दौरान, उन्होंने व्यावसायिक नेताओं से कहा कि भारत और रूस केवल व्यापार के माध्यम से ही नहीं, बल्कि निवेश, संयुक्त उद्यम और गहन सहयोग के माध्यम से भी एक-दूसरे के विकास में योगदान दे सकते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक मजबूत और टिकाऊ रणनीतिक साझेदारी के लिए एक मजबूत आर्थिक आधार होना आवश्यक है।
जयशंकर का यह दौरा एक महत्वपूर्ण समय पर हुआ है। अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाए जाने के बाद, भारत के लिए व्यापारिक संबंधों में विविधता लाना और नई राहें खोजना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। रूस के साथ मजबूत संबंध भारत को अपनी आर्थिक कमजोरियों को कम करने और वैकल्पिक विकास के रास्ते सुरक्षित करने में मदद कर सकते हैं। भारत में रूसी दूतावास के प्रभारी रोमन बाबुश्किन की टिप्पणी इस बात को और भी स्पष्ट करती है। उन्होंने कहा कि यदि भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में प्रवेश करने में कठिनाई होती है, तो रूसी बाजार में उनका स्वागत है।
कुल मिलाकर, अधिक संतुलन, नवाचार और निवेश पर जोर देकर, भारत यह संकेत दे रहा है कि रूस के साथ उसकी साझेदारी एक बहुध्रुवीय आर्थिक व्यवस्था के निर्माण में एक केंद्रीय बिंदु बनी रहेगी। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति और आर्थिक व्यवस्था में भी भारत की स्थिति को सुदृढ़ करेगा।
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