भारत की शांति स्थापना के प्रति प्रतिबद्धता: यूएन में राजदूत पी. हरीश ने रखी मजबूत राय
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में शांति निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्वामित्व, बिना शर्त वित्तीय सहायता और क्षेत्रीय सहयोग की वकालत की।

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन ने 2 सितंबर को अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर यह जानकारी साझा की। राजदूत हरीश ने अपने संबोधन में शांति निर्माण के सभी प्रयासों में राष्ट्रीय स्वामित्व की वकालत की। उन्होंने कहा कि इन प्रयासों को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि वे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के पूरक बन सकें। यह दृष्टिकोण भारत की इस सोच को दर्शाता है कि शांति निर्माण के लिए किसी भी देश के अपने समाधान सबसे प्रभावी होते हैं।
राजदूत हरीश ने स्पष्ट किया कि स्वैच्छिक राष्ट्रीय रोकथाम और शांति निर्माण रणनीतियाँ (एनपीएस) केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पीबीसी या अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से मिलने वाली सहायता को एनपीएस की तैयारी या कार्यान्वयन पर सशर्त नहीं बनाया जाना चाहिए। यह बयान विकासशील देशों के लिए बिना किसी शर्त के सहायता प्रदान करने की भारत की नीति का समर्थन करता है, ताकि वे अपनी विशिष्ट जरूरतों के अनुसार शांति निर्माण के कार्यक्रमों को चला सकें।
इसके अलावा, हरीश ने पीबीसी, शांति निर्माण कोष (पीबीएफ) और व्यापक संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में समन्वय और सुसंगति को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में चल रही यूएन80 प्रक्रिया का उपयोग दोहराव से बचने और बेहतर सहयोग स्थापित करने के लिए किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में, रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
अपने संबोधन में, राजदूत हरीश ने क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय संगठनों के साथ साझेदारी को मजबूत करने पर भी जोर दिया। उनका मानना है कि यह सहयोग शांति निर्माण के प्रयासों को और अधिक प्रभावी बना सकता है। उन्होंने महिलाओं, शांति और सुरक्षा (WPS) और युवाओं, शांति और सुरक्षा (YPS) के एजेंडे को अधिक समर्थन देने की भी वकालत की। इस पर जोर देने का उद्देश्य समावेशी शांति निर्माण दृष्टिकोणों को सुदृढ़ करना है, जिसमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित हो।
What's Your Reaction?






