अली असग़र के झूले और अली अकबर के ताबूत की ज़ियारत को उमड़ा ग़मगीन सैलाब

मोहर्रम की नवीं तारीख़ पर इमामबाड़ों में अली असग़र व अली अकबर की शहादत पर उमड़ा अजादारों का ग़मगीन हुजूम

Jul 5, 2025 - 21:05
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अली असग़र के झूले और अली अकबर के ताबूत की ज़ियारत को उमड़ा ग़मगीन सैलाब
अली असग़र के झूले और अली अकबर के ताबूत की ज़ियारत को उमड़ा ग़मगीन सैलाब

प्रयागराज। मोहर्रम की नवीं तारीख़ पर प्रयागराज में हुसैनी अजादारी अपने चरम पर रही। चक ज़ीरो रोड स्थित इमामबाड़ा डिप्टी ज़ाहिद हुसैन और अन्य इमामबाड़ों में आज़ादारों का जनसैलाब उमड़ पड़ा, जब मासूम अली असग़र का झूला और हज़रत अली अकबर का फूलों से सजा ताबूत ज़ियारत के लिए निकाला गया। माहौल ग़मगीन था और फिज़ा "या अली या हुसैन" की सदाओं से गूंज उठी।

मजलिस का आगाज़ रज़ा इस्माईल सफवी और उनके साथियों के मार्मिक मर्सिये से हुआ। इसके बाद मौलाना सैय्यद रज़ी हैदर रिज़वी साहब क़िब्ला ने नवीं मोहर्रम की मजलिस को खिताब करते हुए करबला में शहीद हुए छै माह के मासूम अली असग़र और हुसैन के जवां बेटे अली अकबर की शहादत का ज़िक्र किया। जैसे-जैसे बयान आगे बढ़ता गया, उपस्थित श्रोताओं की आंखें अश्कों से भीग गईं और चारों ओर से सिसकियों और मातम की आवाज़ें आने लगीं।

अन्जुमन हुसैनिया क़दीम के बुज़ुर्ग नौहाख्वान शाह बहादुर ने करबला के दर्दनाक मंजर को बयान करते हुए पुरदर्द नौहा पढ़ा, जिसने हर दिल को हिला दिया। वहीं यूशा बहादुर, मोहम्मद अहमद गुड्डू और उनके साथियों ने दूसरा नौहा पेश कर माहौल को और ज़्यादा ग़मगीन कर दिया।

इसी क्रम में छोटी चक स्थित इमामबाड़ा वज़ीर हैदर में अन्जुमन आबिदया के नौहाख्वान मिर्ज़ा काज़िम अली ने अपने पारंपरिक अंदाज़ में क़दीमी नौहा पेश किया, जिससे श्रोता अपने अश्क रोक न सके। ज़ाकिरे अहलेबैत अशरफ अब्बास खां ने भी मजलिस को संबोधित कर हुसैनी कारवां की कुर्बानियों का ज़िक्र किया।

घंटाघर स्थित इमामबाड़ा सय्यद मियां में रज़ा अब्बास ज़ैदी ने शहादत के पहलुओं को उजागर किया, वहीं अन्जुमन हैदरिया के नौहाख्वान हसन रिज़वी और उनके साथियों ने अपनी आवाज़ में ग़म को पिरोकर नौहा पेश किया, जिसने हर श्रोता को भावविभोर कर दिया।

हर साल की तरह इस बार भी मोहर्रम की नवीं तारीख़ पर अली असग़र के झूले और अली अकबर के ताबूत की ज़ियारत को लेकर अजादारों में विशेष उत्साह देखने को मिला। यह दिन हुसैनी मोहब्बत और करबला के शहीदों को याद करने का प्रतीक बन गया है, जो ग़म और वफ़ा की रिवायतों को ज़िंदा रखता है।

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