प्रयागराज में संगोष्ठी: शोध कार्यों में पांडुलिपियों की भूमिका पर विद्वानों ने रखे विचार
प्रयागराज में पांडुलिपियों के महत्व पर संगोष्ठी, शोध में इनकी उपयोगिता और भारतीय ज्ञान परंपरा पर हुई चर्चा।

प्रयागराज : शोधकार्यों में पांडुलिपियों की प्रामाणिकता और उनके महत्व को केंद्र में रखते हुए राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय प्रयागराज एवं केंद्रीय राज्य पुस्तकालय उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी का उद्घाटन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय प्रयागराज के वरिष्ठ आचार्य प्रो. बनमाली बिस्वाल ने दीप प्रज्वलित कर किया। कार्यक्रम में विभिन्न भाषाओं और विषयों के विशेषज्ञों ने पांडुलिपियों की शोध में भूमिका पर विस्तृत विचार साझा किए।
प्रो. अनिल कुमार गिरि (संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने कहा कि पांडुलिपियां भारतीय और पाश्चात्य दोनों ज्ञान परंपराओं को जोड़ने की कड़ी हैं। इनसे शोध कार्य न केवल दोषमुक्त और प्रासंगिक होता है, बल्कि इतिहास को समझने में भी सहायक बनता है।
डा. अरुण कुमार मिश्र (मुनीश्वर दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, प्रतापगढ़) ने अपने व्याख्यान में पांडुलिपियों की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए बताया कि वैज्ञानिक, भाषाई, तकनीकी और लिपिगत शोध में इनका स्थान अनिवार्य है।
डा. नीलोफर हफीज (उर्दू-फारसी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने फारसी पांडुलिपियों पर शोध करते समय आने वाली समस्याओं और उनके समाधान के विषय में चर्चा की। वहीं, डा. फाजिल हाशमी (उर्दू विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय) ने बताया कि उर्दू में पांडुलिपियों को मखतूता कहा जाता है और ज्ञान संचयन के लिए इनका अध्ययन अत्यंत आवश्यक है।
पुस्तकालयाध्यक्ष रामआसरे सरोज ने इस अवसर पर काव्यात्मक प्रस्तुति दी, जिससे कार्यक्रम का माहौल और भी सारगर्भित बन गया। हरिश्चंद्र दूबे ने मंच संचालन किया और राकेश कुमार वर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोध छात्र-छात्राएं, राजकीय इंटर कॉलेज के शिक्षक एवं विद्यार्थी, तथा पुस्तकालयों के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे। अंत में राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी का विधिवत समापन हुआ।
इस शैक्षणिक आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि नई शिक्षा नीति 2020 में जिस भारतीय ज्ञान परंपरा को महत्व दिया गया है, उसकी नींव पांडुलिपि ग्रंथों पर ही टिकी है। ऐसे में पांडुलिपियों का अध्ययन और संरक्षण आज की पीढ़ी के लिए अत्यंत आवश्यक हो गया है।
उपस्थित प्रमुखों में रुसी श्रीवास्तव, डॉ. शाकिरा तलत, अजय कुमार मौर्य, राज नारायण पटेल, शुभम कुमार, अभिषेक कुमार समेत राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय एवं केंद्रीय राज्य पुस्तकालय के अधिकारी व कर्मचारी शामिल रहे।
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