विकास से दूर विमुक्त और घुमन्तू जनजातियाँ: स्थायी समाधान की दरकार
उत्तर प्रदेश की घुमन्तू जनजातियाँ आज भी विकास की धारा से वंचित हैं, ज़रूरत है ठोस नीति介 और सम्मानजनक पुनर्वास की

उत्तर प्रदेश विकास की नई राह पर तेजी से अग्रसर है, लेकिन इसके समानांतर ऐसे समुदाय भी हैं जो अब भी मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं। विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियाँ — जैसे नट, बंजारे, गाड़िया लोहार, भांतू, कनजार, सपेरा, डोम और कई अन्य — आज भी अस्थायी झोपड़ियों, पटरियों और जंगल के किनारों पर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
ऐतिहासिक रूप से ये समुदाय खानाबदोश जीवनशैली के साथ पारंपरिक शिल्प, संगीत, जड़ी-बूटी और लोहारगीरी जैसे व्यवसायों से जुड़े रहे, लेकिन आज उनकी पहचान ही संकट में है। न स्थायी पता है, न पहचान पत्र, न राशन कार्ड और न ही सामाजिक कल्याण की योजनाओं तक पहुंच।
सरकारी घोषणाएँ और योजनाएँ वर्षों से बन रही हैं, पर इनका वास्तविक लाभ इन समुदायों तक नहीं पहुंच पा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और सम्मानजनक जीवन – ये अब भी इनके लिए ‘सपना’ हैं।
आज आवश्यकता है एक “घुमन्तू जनजाति पुनर्वास योजना” की जो नीचे दिए गए बिंदुओं पर आधारित हो:
सर्वेक्षण और पहचान: हर जिले में इन समुदायों का विस्तृत सर्वेक्षण हो, जिसमें उनकी आबादी, जीवनशैली, स्वास्थ्य, और आजीविका को दर्ज किया जाए।
विशेष शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्र: बच्चों और महिलाओं के लिए आवासीय विद्यालय, सामुदायिक चिकित्सा केंद्र और मोबाइल हेल्थ यूनिट चलाई जाएं।
पुनर्वास योजना: स्थायी भूमि और मकान देने की योजना चलाई जाए, जिसमें बिजली, पानी, शौचालय जैसी सुविधाएँ हों।
कौशल विकास और बाजार से जुड़ाव: इनके पारंपरिक शिल्प और उत्पादों को आधुनिक तकनीक से जोड़कर प्रशिक्षण दिया जाए और सरकारी मेलों, स्टोरों तथा ऑनलाइन पोर्टलों से जोड़ा जाए।
यदि उत्तर प्रदेश सरकार राजधानी लखनऊ से इसकी शुरुआत करे, तो यह एक मॉडल पुनर्वास मिशन बन सकता है। समाज कल्याण, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास विभाग मिलकर इसे बहु-विभागीय मिशन मोड में चला सकते हैं।
यह केवल एक राजनीतिक या प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं है — यह हमारी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है कि हम इन श्रमशील, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध समुदायों को पहचान, सम्मान और अवसर प्रदान करें।
जब तक विकास की धारा विमुक्त और घुमन्तू जनजातियों तक नहीं पहुँचेगी, तब तक ‘विकास’ वास्तव में समावेशी नहीं कहलाएगा।
(गगन शर्मा)
घुमन्तू जनजाति परिषद, अवध प्रान्त, लखनऊ
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