प्रयागराज में 'कवि-दिवस' का आयोजन: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद कर कवियों ने अपनी रचनाओं से मोहा मन

हिंदुस्तानी एकेडेमी ने प्रयागराज में 'कवि-दिवस' पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें कवियों ने अपनी रचनाओं से सामाजिक सरोकारों को उजागर किया।

Aug 3, 2025 - 20:12
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प्रयागराज में 'कवि-दिवस' का आयोजन: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद कर कवियों ने अपनी रचनाओं से मोहा मन

प्रयागराज: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्म जयंती को 'कवि-दिवस' के रूप में मनाते हुए, हिंदुस्तानी एकेडेमी उत्तर प्रदेश, प्रयागराज ने रविवार को एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं के मन को मोह लिया।

समारोह का शुभारंभ पारंपरिक रूप से दीप प्रज्ज्वलन और मां सरस्वती की प्रतिमा के साथ-साथ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के चित्र पर माल्यार्पण करके किया गया। इसके बाद, एकेडेमी के सचिव डॉ. अजीत कुमार सिंह और कोषाध्यक्ष पायल सिंह ने सभी सम्मानित कवियों का शॉल, पुष्पगुच्छ और प्रतीक चिन्ह देकर स्वागत किया।

अपने स्वागत भाषण में, डॉ. अजीत कुमार सिंह ने 'कवि-दिवस' के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हिंदुस्तानी एकेडेमी ने 1987 में मैथिलीशरण गुप्त की जन्म शताब्दी के अवसर पर उनके जन्मदिन 3 अगस्त को 'कवि-दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। इसी क्रम में, तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने 26 अप्रैल 1987 को इसकी आधिकारिक घोषणा की थी, और तभी से यह परंपरा हर साल निभाई जा रही है।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि वीरेंद्र आस्तिक (कानपुर) ने की, जबकि इसका कुशल संचालन डॉ. श्लेष गौतम ने किया। काव्य पाठ की शुरुआत प्रयागराज के डॉ. प्रकाश खेतान, डॉ. विजयानंद, शैलेंद्र और डॉ. विनम्रसेन सिंह जैसे स्थानीय कवियों के साथ-साथ नई दिल्ली से आईं डॉ. रेखा शेखावत ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। इसके अतिरिक्त, जितेंद्र 'जलज', शिवम भगवती और कुमार विकास ने भी अपनी कविताओं से श्रोताओं को प्रभावित किया।

कवियों ने अपनी रचनाओं में जीवन के विविध रसों को घोलते हुए, समाज में व्याप्त विसंगतियों पर भी तीखा प्रहार किया। डॉ. श्लेष गौतम ने सावन की बारिश से उपजे दर्द को अपनी पंक्तियों में उतारा, "ऐ सावन दिन रात तू, बरस चुका है खूब, अब विनती थम जा यहीं, लोग रहे हैं डूब।" वहीं डॉ. विनम्रसेन सिंह ने जीवन की कड़वी सच्चाई को उजागर करते हुए कहा, "जिंदगी के रास्ते पर जब शहर कर चलता जरूरी है... हैं बहुत नकली यहाँ रिश्ते, इस लिए ये याद रखना तुम, हो कोई कितना भी नज़दीकी, पर उचित दूरी जरूरी है।" महिला रचनाकार डॉ. रेखा शेखावत ने अपनी कविता के माध्यम से दिनभर की थकान के बाद भी घर के काम में लगी रहने वाली महिलाओं के जीवन को दर्शाया, जिसने श्रोताओं को भावुक कर दिया।

कुमार विकास की कविता में जिंदगी को एक अधूरे अखबार की तरह दिखाया गया, जबकि जितेंद्र 'जलज' की रचनाओं ने प्रकृति और मौसम के बदलते मिजाज को खूबसूरती से चित्रित किया। वीरेंद्र आस्तिक की ओजपूर्ण पंक्तियां, "हम तो खाली मंदिर भर है, ईश्वर पास चला आता है" ने लोगों में नई ऊर्जा भर दी।

कार्यक्रम का समापन एकेडेमी की कोषाध्यक्ष पायल सिंह द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस अवसर पर प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह, संजय पुरुषार्थी, डॉ. अनिल कुमार सिंह, वजीर खान, रघुनाथ द्विवेदी, मनोज गुप्ता, डॉ. संजय कुमार सिंह, डॉ. प्रतिमा सिंह, नजर इलाहाबादी और एम एस खान सहित शहर के कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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