IMS BHU में लौट रही सुनने की दुनिया: कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी से गूंजने लगी नन्ही मुस्कानें
IMS BHU की कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी श्रवण बाधित बच्चों को सुनने की नई दुनिया से जोड़ रही है। Keyword: बच्चों में श्रवण पुनर्स्थापन

वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (IMS BHU) के ईएनटी विभाग में हो रही नियमित कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी ने सैकड़ों बच्चों के जीवन में सुनने की एक नई सुबह ला दी है। यह तकनीक न केवल विज्ञान की उन्नति का प्रमाण है, बल्कि सामाजिक समावेशन की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। विभागाध्यक्ष डॉ. एस.के. अग्रवाल के नेतृत्व में किया जा रहा यह कार्य न केवल पूर्वांचल बल्कि बिहार, झारखंड और नेपाल तक के बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि कोक्लियर इम्प्लांट एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसे शल्यचिकित्सा द्वारा कान के अंदर स्थापित किया जाता है। यह उपकरण उन बच्चों के लिए फायदेमंद होता है जो जन्म से ही या किसी अन्य कारणवश सुनने की क्षमता खो चुके हैं। उन्होंने बताया कि एक बच्चे द्वारा पहली बार अपने पिता की आवाज़ सुनकर मुस्कुराने का दृश्य विभाग के सभी डॉक्टरों के लिए भावुक कर देने वाला पल था।
इस तकनीक का लाभ विशेष रूप से 0 से 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को मिलता है, क्योंकि यही वह समय होता है जब भाषा और श्रवण विकास तीव्र गति से होता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि यह प्रत्यारोपण एक वर्ष की आयु से पहले कर दिया जाए, तो बच्चा सामान्य रूप से भाषा कौशल विकसित कर सकता है और सामान्य शिक्षा ग्रहण कर सकता है।
सर्जरी की लागत को लेकर डॉ. अग्रवाल ने बताया कि यह प्रक्रिया कई सरकारी योजनाओं के तहत पूरी तरह नि:शुल्क कराई जा रही है। इससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को भी जीवन में नई दिशा मिल रही है। IMS BHU के ENT विभाग में हर बुधवार को विशेष स्क्रीनिंग और परामर्श शिविर आयोजित किए जाते हैं, जिनमें श्रवण बाधित बच्चों की पहचान और मार्गदर्शन किया जाता है।
डॉ. अग्रवाल ने यह भी साझा किया कि भारत में प्रत्येक 1000 नवजातों में से 4 से 6 बच्चे श्रवण हानि के साथ जन्म लेते हैं। यदि समय रहते उनकी जांच और उपचार हो जाए, तो वे न केवल सुन सकते हैं बल्कि समाज में पूरी तरह आत्मनिर्भर जीवन जी सकते हैं।
यह पहल जहां तकनीकी उन्नति का परिचायक है, वहीं यह सामाजिक संवेदनशीलता का भी उदाहरण है। IMS BHU ने यह साबित कर दिया है कि सर्जरी केवल चिकित्सा का ही नहीं, बल्कि जीवन में उजाले लौटाने का भी माध्यम हो सकती है। यह नवाचार न केवल बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाता है, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी आशा की एक नई किरण बनता है।
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