अब आंखों की जांच से टीबी का पता संभव, डॉ. परवेज़ ख़ान का शोध
डॉ. परवेज़ ख़ान ने शोध में पाया कि आंखों की जांच से टीबी का पता लगाया जा सकता है और उसके दुष्प्रभावों का भी इलाज संभव है।

कानपुर: भारत में टीबी के बढ़ते संक्रमण के बीच, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. परवेज़ ख़ान ने एक महत्वपूर्ण शोध किया है। उनके शोध के अनुसार, अब आंखों की जांच करके टीबी जैसी गंभीर बीमारी का पता लगाया जा सकेगा, जिससे समय पर इलाज शुरू करके मरीजों को बचाया जा सकता है। यह शोध उन लाखों लोगों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है जो टीबी के इलाज में होने वाले साइड इफेक्ट्स से जूझ रहे हैं।
टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एथम्ब्यूटोल के साइड इफेक्ट्स से अक्सर मरीजों की आंखों की रोशनी चली जाती है। यह दवा आंखों की नसों (ऑप्टिक नर्व) से कॉपर और जिंक को खींच लेती है, जिससे नसों की माइटोकॉन्ड्रिया को नुकसान पहुंचता है और धीरे-धीरे मरीजों की दृष्टि चली जाती है। अभी तक इस समस्या का कोई कारगर इलाज नहीं था।
डॉ. परवेज़ ख़ान ने पिछले चार साल से इस समस्या पर शोध किया और इसके उपचार की खोज की। उन्होंने अपने शोध में टीबी के मरीजों को सिलोसटाज़ोल, पेंटोक्सीफ़ाइलिन और विटामिन बी-12 का मिश्रण दिया। इसके बाद, मरीजों की दृष्टि में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। इस सुधार को वीईपी टेस्ट (Visual Evoked Potential) द्वारा भी प्रमाणित किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि है, जो टीबी के इलाज के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायक हो सकती है।
डॉ. ख़ान का यह शोध यूरोपियन सोसाइटी ऑफ़ मेडिसिन के एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है। उनके शोध के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए, उन्हें दिल्ली रेटिना फोरम की एक कॉन्फ्रेंस में भी इस शोध को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया है। यह सम्मान न केवल डॉ. ख़ान के लिए, बल्कि जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज और पूरे कानपुर के लिए गर्व की बात है।
डॉ. परवेज़ ख़ान ने इस शोध की सफलता का श्रेय जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय काला के कुशल नेतृत्व और शोध को दिए गए प्रोत्साहन को दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे उच्च स्तरीय शोध तभी संभव हो पाते हैं जब संस्थान का नेतृत्व उन्हें प्रोत्साहित करे।
यह शोध भारत जैसे देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जहां टीबी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है और अक्सर डायबिटीज और एड्स जैसी बीमारियों के साथ मिलकर और भी विकराल रूप ले लेती है। आंखों की जांच से टीबी का पता लगाने की यह नई तकनीक न केवल रोग की शुरुआती पहचान में मदद करेगी, बल्कि इससे टीबी के इलाज के दुष्प्रभावों को कम करने में भी मदद मिलेगी, जिससे मरीजों का जीवन बेहतर हो सकेगा।
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