क्या न्यूटन से सदियों पहले ही भास्कराचार्य ने खोज लिया था गुरुत्वाकर्षण का रहस्य?
भास्कराचार्य ने न्यूटन से 500 साल पहले ही गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया था। जानिए 'सिद्धांत शिरोमणि' में छिपे इस वैज्ञानिक ज्ञान के बारे में।

जब भी हम गुरुत्वाकर्षण की बात करते हैं, तो हमारे मन में सबसे पहले सर आइजैक न्यूटन का नाम आता है। यह एक ऐसा तथ्य है जो हम सभी ने अपने स्कूली जीवन में पढ़ा है। माना जाता है कि न्यूटन ने 1666 में सेब के पेड़ से गिरते हुए फल को देखकर गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी। लेकिन, क्या यह पूरी कहानी है? क्या सचमुच गुरुत्वाकर्षण जैसी मौलिक शक्ति की खोज महज 350 साल पहले ही हुई थी, जबकि मानव सभ्यता हजारों साल पुरानी है?
यह दावा कि न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की, एक आम धारणा है, लेकिन भारतीय इतिहास और प्राचीन ग्रंथों में इसके विपरीत कई प्रमाण मिलते हैं। ये प्रमाण हमें महर्षि भास्कराचार्य की ओर ले जाते हैं, जो न्यूटन से लगभग 500 वर्ष पूर्व ही इस सिद्धांत से अवगत थे। भास्कराचार्य एक महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे जिनका जन्म 1114 ई. में हुआ था। उन्होंने उज्जैन की प्रसिद्ध वेधशाला का नेतृत्व किया, जो प्राचीन भारत में गणित और खगोल शास्त्र का एक प्रमुख केंद्र था।
भास्कराचार्य ने मात्र 36 वर्ष की आयु में अपने कालजयी ग्रंथ "सिद्धांत शिरोमणि" की रचना की। यह ग्रंथ चार भागों में विभाजित है: लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय, और ग्रह गणिताध्याय। इन चारों भागों में उन्होंने गणित और खगोल शास्त्र के गहन सिद्धांतों को बड़े ही सरल और काव्यात्मक ढंग से समझाया है। 'लीलावती' नामक भाग उन्होंने अपनी बेटी के नाम पर लिखा, जिसमें पिता-पुत्री के संवाद के माध्यम से जटिल गणितीय सूत्रों को स्पष्ट किया गया है।
इसी ग्रंथ के 'गोलाध्याय' खंड में भास्कराचार्य ने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का स्पष्ट वर्णन किया है। वह लिखते हैं:
"मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो, विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।"
जिसका अर्थ है कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है और पृथ्वी स्वाभाविक रूप से स्थिर है। इसके बाद वह गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को और भी विस्तार से समझाते हैं:
"आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं, गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या। आकृष्यते तत्पततीव भाति, समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।"
इस श्लोक का सार यह है कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। यह अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है, और इसी कारण वे जमीन पर गिरते हैं। वह आगे कहते हैं कि आकाश में ग्रह इसलिए निरावलंब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्तियां एक संतुलन बनाए रखती हैं, जिससे कोई भी ग्रह किसी ओर गिरता नहीं है।
यह केवल भास्कराचार्य तक ही सीमित नहीं है। विमान शास्त्र जैसे ग्रंथों के रचयिता, महर्षि भारद्वाज ने भी हजारों वर्ष पूर्व ही गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का गहन अध्ययन किया था। किसी भी वस्तु को उड़ाने के लिए पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का विरोध करना अनिवार्य है। जब तक कोई व्यक्ति गुरुत्वाकर्षण को पूरी तरह नहीं जान लेता, तब तक उसके लिए विमान शास्त्र जैसे ग्रंथ की रचना करना असंभव है। यह इस बात का प्रमाण है कि गुरुत्वाकर्षण की खोज हजारों वर्षों पूर्व ही हो चुकी थी।
यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने आधुनिक विज्ञान के कई आधारभूत सिद्धांतों को सदियों पहले ही खोज लिया था। अब आवश्यकता है कि इस गौरवशाली ज्ञान और विज्ञान को विश्व मंच पर स्थापित किया जाए और आने वाली पीढ़ियों को इससे अवगत कराया जाए। यह न केवल हमारे इतिहास को सही संदर्भ में प्रस्तुत करेगा, बल्कि हमें अपनी सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत पर गर्व करने का अवसर भी देगा।
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