हिंदी बनी भारत-श्रीलंका संबंधों की सांस्कृतिक सेतु
भारत और श्रीलंका में हिंदी भाषा के जरिए शैक्षिक-सांस्कृतिक सहयोग को नया आयाम, छात्रों और शिक्षकों को लाभ

कोलंबो। भारत और श्रीलंका के ऐतिहासिक संबंधों को नया आयाम देते हुए हिंदी भाषा अब इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच शैक्षिक और सांस्कृतिक संवाद की सेतु बनती जा रही है। इसी क्रम में, कोलंबो स्थित जनरल सर जॉन कोटेलावाला रक्षा विश्वविद्यालय (केडीयू) ने भारत के स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (एसवीसीसी) के सहयोग से हिंदी भाषा शिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त संतोष झा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समझ और कूटनीतिक सहयोग का आधार भी है। हिंदी, जो दुनिया भर में 60 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है, श्रीलंकाई छात्रों को भारत के विविध साहित्य, दर्शन, मीडिया और रोजगार के अवसरों तक पहुँच प्रदान कर सकती है।
केडीयू का हिंदी पाठ्यक्रम स्नातक छात्रों के लिए एक वैकल्पिक विषय के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा, जो कि सैन्य और नागरिक दोनों वर्गों के स्कॉलर्स के लिए खुला रहेगा। भारत से आए विशेषज्ञ प्रशिक्षकों के माध्यम से यह कोर्स भाषा के व्यावहारिक उपयोग, संस्कृति-संवेदना, और संचार कौशल को विकसित करने के लिए तैयार किया गया है।
यह पहल जनवरी 2025 में एसवीसीसी द्वारा आयोजित पहले भारत-श्रीलंका हिंदी सम्मेलन के विस्तार के रूप में देखी जा रही है, जब श्रीलंका के मुक्त विश्वविद्यालय ने एसवीसीसी के साथ मिलकर पहली बार दूरस्थ हिंदी शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया था।
इस बीच, भारत और श्रीलंका के बीच शिक्षक-शिक्षण सहयोग भी गति पकड़ रहा है। केंद्रीय हिंदी संस्थान (केएचएस), आगरा में आयोजित हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 35 श्रीलंकाई हिंदी शिक्षकों का चयन हुआ है। यह पहली बार है जब श्रीलंका के सरकारी स्कूलों के शिक्षक इस तरह के किसी प्रतिष्ठित प्रशिक्षण कार्यक्रम में भारत भेजे जा रहे हैं।
वर्तमान में श्रीलंका के 88 सरकारी स्कूलों में हिंदी को विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। श्रीलंका के शिक्षा मंत्रालय ने इस बढ़ते रुचि और सहयोग को देखते हुए हिंदी शिक्षकों को भारत भेजने की योजना को प्राथमिकता दी है।
यह स्पष्ट संकेत है कि हिंदी अब केवल एक भाषा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मीयता, ज्ञान-विनिमय और क्षेत्रीय सहयोग का एक प्रभावी माध्यम बन चुकी है। कोलंबो से शुरू हुआ यह कदम पूरे दक्षिण एशिया में भाषायी कूटनीति की एक नई मिसाल बनने की ओर अग्रसर है।
(रिपोर्ट: शाश्वत तिवारी)