नवाचार और सहकारिता से कृषि में आएगा बदलाव: किसान चौपाल में बोले वाल्मीकि त्रिपाठी
इफको किसान चौपाल में नैनो उर्वरकों व सहकारी खेती के लाभों पर चर्चा, किसानों से तकनीक अपनाने की अपील।

(जैनुल आब्दीन)
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं उत्तर प्रदेश सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (यूपीपीसीएफ) के अध्यक्ष वाल्मीकि त्रिपाठी ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा, “अब समय आ गया है कि परंपरागत खेती से आगे बढ़कर किसान नवाचार को अपनाएं। उन्नत उर्वरकों के प्रयोग से खेती में क्रांतिकारी बदलाव संभव है। नैनो तकनीक से न केवल उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि किसानों की लागत भी घटेगी।” उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे सहकारिता के सिद्धांतों पर संगठित होकर कार्य करें और समूह में संसाधनों का समुचित उपयोग करें।
फुलपुर स्थित इफको इकाई के प्रमुख संजय कुदेशिया ने तकनीकी जानकारी साझा करते हुए कहा कि नैनो यूरिया प्लस और नैनो डीएपी बहुत ही कम मात्रा में उपयोग किए जाने पर भी परंपरागत उर्वरकों से बेहतर परिणाम देते हैं। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि खेती की लागत में भी महत्वपूर्ण कमी आती है।
चौपाल के दौरान यह भी बताया गया कि वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इस अवसर पर किसानों को समूह में कार्य करने, साझा खरीद-बिक्री, संसाधनों के सामूहिक प्रयोग एवं निर्णय लेने जैसी सहकारी व्यवस्थाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इन उपायों से किसान न केवल अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि बाजार की अस्थिरताओं और महंगाई जैसे संकटों से भी निपट सकते हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित किसानों ने अपनी व्यावहारिक समस्याओं को भी साझा किया, जैसे—नैनो उर्वरकों के छिड़काव हेतु यंत्रों की कमी, प्रशिक्षण की आवश्यकता और परंपरागत तरीकों की आदत। इफको प्रतिनिधियों ने इन विषयों को गंभीरता से लेते हुए किसानों को हरसंभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।
किसानों को भरोसा दिलाया गया कि नैनो तकनीक आधारित खेती न केवल अधिक लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण-संवेदनशील और टिकाऊ भी है। इफको द्वारा प्रशिक्षण सत्र, उपकरण उपलब्धता और जागरूकता अभियानों के माध्यम से जल्द ही इन समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
यह किसान चौपाल किसानों के लिए एक नई सोच, नई तकनीक और संगठित प्रयासों की दिशा में प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। चौपाल ने यह स्पष्ट किया कि नवाचार और सहकारिता का समन्वय ही भविष्य की टिकाऊ और समृद्ध कृषि की कुंजी है।