पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि, केंद्र सरकार से न्यायिक जांच की मांग दोहराई

पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, केंद्र से संदिग्ध मृत्यु की जांच की मांग दोहराई गई।

पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि, केंद्र सरकार से न्यायिक जांच की मांग दोहराई
पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि

कानपुर। भारतीय जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद, राष्ट्रवादी नेता और केंद्रीय मंत्री रहे पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर कानपुर के एम ब्लॉक, काकादेव में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सभा के दौरान उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

इस अवसर पर सांसद देवेंद्र सिंह भोले के मीडिया प्रभारी अशोक सिंह दद्दा ने कहा कि पंडित मुखर्जी ने "एक देश, एक निशान, एक विधान, एक प्रधान" के सिद्धांत को साकार करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। उन्होंने वर्ष 1952 में जम्मू कश्मीर की एक रैली में स्पष्ट रूप से कहा था कि या तो वे भारतीय संविधान को वहां लागू कराएंगे या अपने प्राणों की आहुति देंगे।

11 मई 1953 को बिना परमिट जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और 23 जून 1953 को संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।

अशोक सिंह दद्दा ने केंद्र सरकार से मांग की कि मुखर्जी की मृत्यु की सच्चाई को जानने के लिए किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र जांच समिति गठित की जाए। उन्होंने कहा कि "देश को यह जानने का अधिकार है कि एक महान राष्ट्रवादी नेता की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई थी।"

उन्होंने मुखर्जी की मां योगमाया देवी के उस बयान को भी याद किया जिसमें उन्होंने कहा था, "मेरे पुत्र की मृत्यु, भारत माता के एक पुत्र की मृत्यु है।"

कार्यक्रम में उपस्थित अन्य वक्ताओं ने भी पंडित मुखर्जी के राष्ट्रवादी योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए और कहा कि आज का भारत यदि जम्मू कश्मीर के पूर्ण विलय और संविधान के समान नियमों का साक्षी बन सका है, तो उसका श्रेय श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को जाता है।

अशोक सिंह दद्दा (मीडिया प्रभारी), निर्भय प्रकाश रेजा, संतोष कुमार शुक्ल, योगेश बाजपेई, शिव सिंह, शशांक पांडे, भास्कर मिश्रा, राजेश प्रजापति समेत अनेक राष्ट्रवादी कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि भर नहीं रहा, बल्कि पंडित मुखर्जी की संदिग्ध मृत्यु की जांच को लेकर एक बार फिर से जनआवाज उठाने का मंच बन गया। अब देखना है कि केंद्र सरकार इस बार इस ऐतिहासिक मांग पर क्या रुख अपनाती है।