बसखारी सीएचसी में महिला चिकित्सक की कमी बनी चुनौती
बसखारी सीएचसी में महिला डॉक्टरों की कमी से गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी और इलाज में गंभीर बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं

अम्बेडकरनगर: अम्बेडकरनगर जनपद के बसखारी क्षेत्र स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) इन दिनों चिकित्सकीय संसाधनों की भारी कमी से जूझ रहा है। सबसे गंभीर स्थिति महिला डॉक्टरों की अनुपलब्धता को लेकर है, जिससे गर्भवती महिलाओं सहित किशोरियों और वृद्ध महिलाओं की चिकित्सा जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
सीएचसी परिसर में 30 शैय्याओं वाला मातृ एवं शिशु कल्याण केंद्र भी कार्यरत है, परंतु महिला चिकित्सकों के न होने के कारण इन सुविधाओं का पूर्ण लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है। पहले यहां तैनात महिला डॉक्टरों — डॉ. रजनी सचान और डॉ. पौनमी देव — के स्थानांतरण के बाद से यह केंद्र महिला डॉक्टरों से पूरी तरह खाली हो चुका है।
डॉ. रजनी सचान का स्थानांतरण जिला अस्पताल में हो जाने के बाद से अब तक कोई स्थायी महिला चिकित्सक सीएचसी में तैनात नहीं की गई है। नतीजतन, डिलीवरी जैसे महत्वपूर्ण मामलों में मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ता है या फिर निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है, जिससे आर्थिक बोझ और बढ़ जाता है।
महिला चिकित्सकों की कमी का प्रभाव सिर्फ प्रसव सेवाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यौन स्वास्थ्य, किशोरी बालिकाओं की जांच, वृद्ध महिलाओं की नियमित चिकित्सा जांच, और महिला-विशेष रोगों की पहचान और इलाज में भी बाधाएं आ रही हैं। सीएचसी पर क्षेत्रीय मेडिकल केसों की रिपोर्टिंग और जांच का कार्य भी होता है, जिसमें महिला डॉक्टर की भूमिका बेहद अहम होती है। बिना महिला डॉक्टर के न तो समुचित मेडिकल रिपोर्ट तैयार हो पा रही है, न ही संवेदनशील मामलों में प्रभावी हस्तक्षेप संभव हो पा रहा है।
सीएचसी के प्रभारी डॉ. भास्कर ने बताया कि महिला डॉक्टरों की गंभीर कमी के संबंध में उच्च स्वास्थ्य अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है। उनका कहना है कि विभागीय स्तर पर इस समस्या को जल्द सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि महिलाओं को समुचित स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।
बसखारी के स्थानीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है और मांग की है कि महिला डॉक्टरों की तैनाती तत्काल की जाए। यह मांग सिर्फ चिकित्सा सुविधा की नहीं, बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य और गरिमा से जुड़ा मुद्दा बन चुका है।
यदि शीघ्र ही महिला चिकित्सकों की तैनाती नहीं होती है, तो इससे न सिर्फ क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होगी, बल्कि मातृ मृत्यु दर में भी इजाफा हो सकता है।
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