अविवेकी अभिभावकों की लापरवाही से वंचित हो रहे जरूरतमंद बच्चे – आरटीई में लगातार हो रहा अन्याय!

RTE योजना में लापरवाही और फर्जीवाड़े से वंचित बच्चों का हक छीना जा रहा है, हर साल सैकड़ों सीटें खाली

अविवेकी अभिभावकों की लापरवाही से वंचित हो रहे जरूरतमंद बच्चे – आरटीई में लगातार हो रहा अन्याय!

(रजनीश कुमार)

बलिया। निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों को निजी विद्यालयों में निशुल्क शिक्षा पाने का अवसर प्रदान किया जाता है। यह योजना वंचित बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने का एक सशक्त माध्यम है। लेकिन दुर्भाग्यवश, अभिभावकों और ऑनलाइन आवेदन भरने वाले सेंटरों की लापरवाही और चालाकियों के कारण यह योजना अपने उद्देश्य को पूरी तरह हासिल नहीं कर पा रही है। परिणामस्वरूप, छात्रों के लिए विद्यालय आवंटित होने के बावजूद, हर वर्ष सैकड़ों सीटें खाली रह जाती हैं।

एक से अधिक चरणों में करते हैं गलत आवेदन

जांच में सामने आया है कि कई अभिभावक अपनी पसंद के स्कूल की चाह में जानबूझकर एक ही बच्चे के लिए अलग-अलग चरणों में कई बार आवेदन करते हैं। कुछ बच्चे पहले से किसी विद्यालय में पढ़ रहे होते हैं, या किसी पूर्ववर्ष में चयनित हो चुके होते हैं, फिर भी दोबारा आवेदन कर दिया जाता है। यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि उन बच्चों के अधिकार का भी हनन है जो वाकई इस योजना के पात्र हैं।

तकनीकी अवरोध के बावजूद हो रही गड़बड़ी

वर्तमान ऑनलाइन प्रणाली में डुप्लीकेट पेन (Permanent Education Number) की पहचान की सुविधा है, लेकिन कई अभिभावक सिस्टम को चकमा देने के लिए कभी नाम तो कभी जन्मतिथि बदलकर नए आवेदन कर देते हैं। इससे तकनीकी प्रणाली भी कई बार उन्हें पकड़ नहीं पाती, और गड़बड़ी का यह सिलसिला चलता रहता है।

सुधार का सुझाव: पूर्व चयनित बच्चों के दोबारा आवेदन पर स्वतः ब्लॉक और विधिक कार्रवाई

अब आवश्यकता है कि ऑनलाइन सिस्टम में यह तकनीकी सुधार जोड़ा जाए कि यदि किसी बच्चे का किसी भी वर्ष विद्यालय में चयन हो चुका है, तो भविष्य में किया गया कोई भी नया आवेदन स्वतः खारिज हो जाए। साथ ही, ऐसे आवेदनकर्ताओं को चिन्हित कर उनके विरुद्ध विधिक कार्रवाई की जाए। इससे फर्जीवाड़ा रुकेगा और पात्र बच्चों को मौका मिलेगा।

चयन के बावजूद नहीं दिलाते दाखिला

एक और बड़ी समस्या यह है कि जब बच्चों का नाम चयन सूची में आ जाता है और विद्यालय आवंटित हो जाता है, तो भी कई अभिभावक बच्चों को दाखिला नहीं दिलाते, सिर्फ इसलिए कि वह विद्यालय उनकी पसंद का नहीं होता। इससे सीटें यूं ही खाली चली जाती हैं और असल में ज़रूरतमंद बच्चे उस स्थान से वंचित रह जाते हैं।

प्रशासनिक चिंता और सख्त रुख जरूरी

शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया,

"हर वर्ष सैकड़ों आवेदन ऐसे होते हैं जो त्रुटिपूर्ण या जानबूझकर दोहराए गए होते हैं। कई बार अभिभावक पहले से पढ़ रहे बच्चों के लिए भी पुनः आवेदन करते हैं। इससे चयन प्रक्रिया प्रभावित होती है। अब समय आ गया है कि ऐसे मामलों पर कठोर विधिक कार्रवाई की जाए।"

निगरानी, जागरूकता और जवाबदेही आवश्यक

ऑनलाइन सेंटरों की निगरानी: फॉर्म भरने वाले निजी सेंटरों की गतिविधियों पर नजर रखी जाए और अनियमितता पाए जाने पर कार्रवाई हो।

अभिभावकों की जिम्मेदारी तय हो: चयन के बाद बच्चों को समय से दाखिला दिलाना उनकी अनिवार्य जिम्मेदारी होनी चाहिए।

वांछित विद्यालयों का ही चयन करें: आवेदन करते समय केवल उन्हीं विद्यालयों को चुना जाए जहां वे वाकई बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। अनावश्यक विकल्प देकर सीटें जाया न करें।आरटीई जैसी जनहितकारी योजना तभी सफल हो सकती है जब सभी संबंधित पक्ष – अभिभावक, आवेदन केंद्र और प्रशासन – अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लें। अगर लापरवाही, फर्जीवाड़ा और मनमानी इसी तरह जारी रही, तो इस योजना का लाभ उन तक कभी नहीं पहुंचेगा जिनके लिए यह बनी है। ज़रूरत है पारदर्शी तकनीक, सख्त निगरानी और सामाजिक चेतना की – और जो लोग इस व्यवस्था में बाधा डालते हैं, उनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई अनिवार्य होनी चाहिए।