"परशुराम कुंड: आस्था, इतिहास और प्रकृति का संगम स्थल जहां पापों से मिलती है मुक्ति"

प्राकृतिक सौंदर्य और पौराणिक महत्व से परिपूर्ण परशुराम कुंड मोक्ष, संस्कृति और आध्यात्मिक अनुभवों का जीवंत तीर्थ है।

"परशुराम कुंड: आस्था, इतिहास और प्रकृति का संगम स्थल जहां पापों से मिलती है मुक्ति"
"परशुराम कुंड: आस्था, इतिहास और प्रकृति का संगम स्थल जहां पापों से मिलती है मुक्ति"

(आर एल पाण्डेय )

लखनऊ। भूमिका- भारतवर्ष अपनी गहन आध्यात्मिक परंपराओं, धार्मिक आस्थाओं तथा ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्व विख्यात है। यहाँ के प्रत्येक प्रदेश में कोई न कोई ऐसा स्थल अवश्य विद्यमान है, जो श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बनकर देशवासियों के हृदय में विशेष स्थान रखता है। इन्हीं अद्भुत स्थलों में से एक है — परशुराम कुंड।

अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिले की सुरम्य पर्वतीय गोद में अवस्थित यह पावन स्थल, प्राकृतिक सौंदर्य, पौराणिक मान्यताओं तथा ऐतिहासिक घटनाओं का सजीव संगम है। परशुराम कुंड न केवल हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए एक अत्यंत पुण्यदायी तीर्थस्थल है, बल्कि यह अरुणाचल की सांस्कृतिक धरोहर में भी एक अमूल्य रत्न के रूप में सम्मिलित है।

पौराणिक मान्यता एवं धार्मिक महत्व

परशुराम कुंड का धार्मिक महत्व भारतीय सनातन संस्कृति में अत्यंत विशेष स्थान रखता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का इस स्थल से गहरा संबंध है।

मान्यता है कि परशुराम जी ने अपने पिता महर्षि जमदग्नि के आदेश पर माता रेणुका का वध कर दिया था। माता के वध के कारण मानसिक पीड़ा और पश्चाताप से व्यथित परशुराम, ऋषियों के परामर्श पर, आत्मशुद्धि हेतु इस स्थान पर पधारे।

कहा जाता है कि जब परशुराम जी ने लोहित नदी के निर्मल जल में स्नान किया, तो उनके हाथ में चिपका हुआ पाप का प्रतीक — उनका परशु (कुल्हाड़ी) — स्वतः ही उनके हाथों से अलग हो गया। उसी क्षण से यह स्थान पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला तीर्थ बन गया और इसका नाम पड़ा — परशुराम कुंड।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

परशुराम कुंड केवल पौराणिक दृष्टि से ही नहीं, अपितु ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 1950 में आये भीषण असम भूकंप के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र की भौगोलिक संरचना में व्यापक परिवर्तन हुआ था।

भूकंप के प्रभाव से परशुराम कुंड की पुरानी जलधारा और प्राकृतिक आकृति पूरी तरह से परिवर्तित हो गई थी। नदी की धारा ने अपने बहाव में परिवर्तन कर लिया और कुंड पर प्रवाहित हो गई। परंतु समय के साथ, प्रकृति ने स्वयं इस स्थल का पुनः नवसृजन किया, और आज लोहित नदी के पत्थरों के बीच एक सुंदर अर्द्धगोलाकार प्राकृतिक कुंड का निर्माण हो चुका है, जिसे श्रद्धालु आज भी उसी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजते हैं।

सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व

परशुराम कुंड केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि यह पूर्वोत्तर भारत की सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। यहाँ प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन होता है।

इस अवसर पर भारत के विभिन्न प्रांतों के श्रद्धालु, साधु-संत, पर्यटक एवं स्थानीय जनजातीय समुदाय बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। मिश्मी जनजाति सहित अनेक आदिवासी समाजों की सांस्कृतिक छटा इस मेले में देखने को मिलती है।

यह पर्व केवल स्नान और धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यहाँ आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेलों में बिकने वाली पारंपरिक वस्तुएँ, स्थानीय व्यंजन और हस्तशिल्प, जनजातीय संस्कृति को भी जीवंत बनाए रखते हैं।

परशुराम कुंड के निकटवर्ती दर्शनीय स्थल

परशुराम कुंड की यात्रा के साथ-साथ पर्यटक निम्नलिखित प्रमुख आकर्षणों का भी आनंद ले सकते हैं:

1. तेज़ू (Tezu)

लोहित जिले का यह सुंदर शहर, परशुराम कुंड से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य, लोहित नदी का विहंगम दृश्य और जनजातीय संस्कृति के दर्शन इसे विशिष्ट बनाते हैं।
    •    लोहित व्यू पॉइंट से सूर्यास्त और सूर्योदय का दृश्य मन मोह लेता है।
    •    जिला संग्रहालय में स्थानीय इतिहास और जनजातीय जीवनशैली का सुंदर संकलन है।

2. ग्लो लेक (Glow Lake)

कामलांग वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित यह झील, पर्वतीय शांति और नैसर्गिक सौंदर्य का उत्तम संगम है। ट्रेकिंग और फोटोग्राफी प्रेमियों के लिए यह स्थान स्वर्ग के समान है।

3. कामलांग वन्यजीव अभयारण्य (Kamlang Wildlife Sanctuary)

यह अभयारण्य जैव विविधता से परिपूर्ण है। बाघ, हाथी, लाल पांडा, तेंदुआ जैसे प्राणी यहाँ प्राकृतिक आवास में देखे जा सकते हैं।

4. भिष्मकनगर किला (Bhismaknagar Fort)

12वीं शताब्दी में निर्मित यह ऐतिहासिक दुर्ग पुरातत्व प्रेमियों के लिए विशेष रुचि का विषय है। किवदंती है कि महाभारतकाल में विदर्भ नरेश भिष्मक का यह किला रहा है।

5. वाकरो (Wakro)

परशुराम कुंड के समीप स्थित यह शांतिपूर्ण गाँव मिश्मी जनजाति की संस्कृति का जीवंत उदाहरण है। प्रकृति प्रेमियों और सांस्कृतिक जिज्ञासुओं के लिए आदर्श स्थल।

पर्यटन और क्षेत्रीय विकास

अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा परशुराम कुंड क्षेत्र में आधारभूत संरचना के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यहाँ के पर्यटन विकास से न केवल स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहा है, बल्कि यह क्षेत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बनता जा रहा है।

सरकार द्वारा सड़क संपर्क, लॉजिंग, सूचना केंद्र, सुरक्षा व्यवस्थाओं तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

परशुराम कुंड केवल एक पौराणिक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि यह हमारी प्राचीन परंपराओं, ऐतिहासिक घटनाओं और सांस्कृतिक धरोहरों का एक जीवंत प्रतीक है। यहाँ की प्राकृतिक छटा, धार्मिक मान्यताएँ और सामाजिक विविधता, श्रद्धालु और पर्यटक — दोनों के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती हैं।

यह स्थान न केवल आत्मशुद्धि और मोक्ष की कामना को पूर्ण करने का स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की सहिष्णुता, समृद्धता और अध्यात्मिक परंपराओं का भी सुंदर उदाहरण है। परशुराम कुंड की यात्रा हर किसी के लिए जीवन में एक बार अवश्य करने योग्य अनुभव है l