प्रयागराज महाकुंभ: अग्नि स्नान साधना में तपस्वियों का दिव्य समर्पण

प्रयागराज महाकुंभ में पंच धूनी तपस्या की दिव्य साधना शुरू, वैष्णव अखाड़ों में संतों द्वारा अग्नि स्नान का अनुष्ठान जारी। जानें इस कठिन तपस्या का महत्व।

फ़रवरी 3, 2025 - 22:30
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प्रयागराज महाकुंभ: अग्नि स्नान साधना में तपस्वियों का दिव्य समर्पण
प्रयागराज महाकुंभ: अग्नि स्नान साधना में तपस्वियों का दिव्य समर्पण
महाकुंभ नगर: महाकुंभ केवल आस्था और स्नान का पर्व नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और साधना का महासंगम भी है। प्रयागराज महाकुंभ 2025 में विभिन्न साधनाओं के संकल्पों का दिव्य नजारा देखने को मिल रहा है। बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर्व से एक विशेष साधना पंच धूनी तपस्या, जिसे अग्नि स्नान साधना भी कहा जाता है, का शुभारंभ हुआ।
तपस्वी नगर में पंच धूनी तपस्या का आरंभ
कुंभ क्षेत्र में हर कोने में कोई न कोई साधक अपनी तपस्या में लीन नजर आता है। लेकिन तपस्वी नगर में बसंत पंचमी से शुरू हुई पंच धूनी तपस्या श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण बनी हुई है। इस साधना में साधक अपने चारों ओर जलती अग्नि के कई घेरे बनाकर बीच में बैठकर ध्यान और साधना करते हैं। साधना के दौरान अग्नि की तीव्र आंच सहन करते हुए तपस्वी अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी करते हैं, जो आम व्यक्ति के लिए असंभव प्रतीत होती है।
खालसा संप्रदाय के संतों की कठिन परंपरा
वैष्णव अखाड़ों के खालसा संप्रदाय में अग्नि स्नान साधना की परंपरा सदियों से चली आ रही है। श्री दिगंबर अनी अखाड़े के महंत राघव दास के अनुसार, यह साधना अखिल भारतीय पंच तेरह भाई त्यागी खालसा के संतों की विशिष्ट साधना मानी जाती है।
यह साधना 18 वर्षों तक निरंतर चलती है।
प्रतिवर्ष 5 महीनों तक इस कठिन तप को साधना पड़ता है।
सफल साधना के उपरांत संत को ‘वैरागी’ की उपाधि दी जाती है।
आस्था और कठोर तपस्या का संगम
महाकुंभ के इस पावन अवसर पर अग्नि स्नान साधना न केवल साधकों की आध्यात्मिक शक्ति और सहनशीलता का परिचय देती है, बल्कि यह मानव आत्मा की परम शक्ति का भी प्रतीक मानी जाती है। श्रद्धालु इस साधना को देखकर आश्चर्य और श्रद्धा से भर जाते हैं और महाकुंभ की आध्यात्मिकता को और गहराई से अनुभव करते हैं।

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