नाथ सम्प्रदाय की विरासत: मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा प्रारम्भ किया गया योगिनियों का कौल सम्प्रदाय

प्रयागराज विश्वविद्यालय में चौसठ योगिनियों पर व्याख्यान, मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा शुरू हुए कौल सम्प्रदाय की चर्चा।

नाथ सम्प्रदाय की विरासत: मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा प्रारम्भ किया गया योगिनियों का कौल सम्प्रदाय

(जैनुल आब्दीन)

प्रयागराज। प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) राज्य विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग द्वारा 12 अप्रैल को एक महत्वपूर्ण शैक्षिक व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसका विषय था "चौसठ योगिनी: सम्प्रदाय, प्रतीक एवं देवियाँ"। इस विशेष व्याख्यान की वक्ता थीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कला संकाय अधिष्ठाता एवं प्राचीन इतिहास विभाग की प्रो. अनामिका रॉय।

प्रो. रॉय ने अपने व्याख्यान में चौसठ योगिनियों के कौल सम्प्रदाय की ऐतिहासिक उत्पत्ति को स्पष्ट करते हुए बताया कि इस सम्प्रदाय की नींव नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा रखी गई थी। उन्होंने कहा कि योगिनियाँ सिर्फ एक देवी समूह नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली तांत्रिक परंपरा की प्रतीक हैं, जो स्त्री शक्ति की विविध रूपों में पूजा करती हैं।

प्रो. रॉय ने बताया कि यद्यपि योगिनियों की संख्या 64 मानी जाती है, फिर भी उनके 300 से अधिक नामों का उल्लेख विभिन्न शास्त्रों और ग्रंथों में मिलता है। उन्होंने यह भी बताया कि अधिकतर योगिनियों के मंदिर खुले आसमान के नीचे वृत्ताकार बनाए जाते थे, जबकि खजुराहो और रिखिया जैसे स्थलों पर इनका स्थापत्य वर्गाकार मिलता है।

तांत्रिक परंपरा की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि तंत्रवाद ने इन योगिनियों को विभिन्न स्थानीय देवी स्वरूपों में समाहित किया और एक विशिष्ट सम्प्रदायिक पहचान दी। उन्होंने योगिनियों और यक्षिणियों के बीच के अंतर को भी स्पष्ट किया और बताया कि कैसे कुछ इतिहासकार योगिनियों को मुख्य देवियों की सेविकाएँ भी मानते हैं।

बंगाल और असम क्षेत्र में योगिनियों से जुड़े जादू-टोने और रहस्यमयी अनुष्ठानों के साक्ष्य भी इस विषय को और रोमांचक बना देते हैं। पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से जब प्रो. रॉय ने विजुअल चित्रण प्रस्तुत किया, तो विद्यार्थियों में विषय के प्रति गहरी रुचि जागृत हुई और उन्होंने उत्साहपूर्वक प्रश्न पूछे।

प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. राजकुमार गुप्त ने स्वागत भाषण देते हुए अतिथि वक्ता का परिचय दिया। अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. विवेक कुमार सिंह एवं डॉ. मनोज कुमार वर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए विद्यार्थियों को योगिनियों की ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक भूमिका से परिचित कराया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. प्रशांत सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। इस मौके पर विभाग के सभी शिक्षकगण, स्नातक, परास्नातक एवं शोध छात्र उपस्थित रहे। कुलपति महोदय ने इस प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों को प्रेरणादायक बताते हुए इनके निरंतर आयोजन की सराहना की।