बुंदेली साहित्य देता है जोश और ऊर्जा: प्रो. मुन्ना तिवारी
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में साहित्य अकादमी के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुक्रवार को समापन हुआ। संगोष्ठी का विषय था "हिंदी के विकास में भोजपुरी, अवधी, ब्रज एवं बुंदेलखंडी भाषा का योगदान"।

उन्होंने यह भी कहा कि बुंदेली और अन्य उपभाषाओं के गुमनाम रचनाकारों को सामने लाना आवश्यक है। इसके लिए हिंदी के वर्तमान विद्वानों को रामचंद्र शुक्ल जैसा बनने की आवश्यकता है।
कुलपति प्रो. सत्यकाम ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा, "हिंदी मुख्यतः बोलियों का समुच्चय है और हर भाषा की अपनी अस्मिता और पहचान है।" उन्होंने अवधी, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, मगही जैसी भाषाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
साहित्य अकादमी के प्रतिनिधि अजय शर्मा ने कहा कि हिंदी को उत्कृष्ट स्थान दिलाने में क्षेत्रीय भाषाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने घोषणा की कि संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में प्रस्तुत व्याख्यानों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जाएगा।
प्रो. रामपाल गंगवार ने कहा कि ब्रजभाषा में कोमलता, श्रृंगार और वात्सल्य का अद्भुत समावेश है, जिसने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।
इस अवसर पर प्रो. हरिदत्त शर्मा, प्रो. राजनाथ सिंह, डॉ. बहादुर सिंह परमार समेत कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी की रिपोर्ट अनुपम ने प्रस्तुत की और संचालन डॉ. त्रिविक्रम तिवारी ने किया। अंत में प्रो. सत्यपाल तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम के दौरान साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित अवधी और भोजपुरी साहित्य की कृतियां कुलपति को भेंट की गईं।