ग्राम पंचायत सचिवों का सीडीओ के खिलाफ विरोध: छुट्टा जानवरों को गौशालाओं में लाने की नीति पर विवाद
ग्राम पंचायत सचिवों ने सीडीओ के खिलाफ विरोध किया। छुट्टा जानवरों को गौशालाओं में लाने को लेकर विवाद गहराया।

यह विवाद तब शुरू हुआ जब सीडीओ ने विकास खंड के कुछ पंचायत सचिवों को निलंबित कर दिया, कारण था कि उनके क्षेत्रों में कई छुट्टा जानवर सड़कों पर घूमते मिले थे। प्रशासन का कहना है कि इन जानवरों को गौशालाओं में भेजने की जिम्मेदारी पंचायत सचिवों की है, लेकिन उन्हें आदेश देने के बावजूद कई सचिवों ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
ग्राम पंचायत सचिवों का कहना है कि सीडीओ की यह कार्रवाई सिर्फ एक तरह से उनके कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करने की साजिश हो सकती है। एक सचिव ने बताया, "यदि हम जानवरों को गौशालाओं में भेजने की कोशिश करते हैं, तो हमारी निलंबन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अगर जानवर सड़कों पर होंगे तो हम जिम्मेदार होंगे और यदि हम गौशालाओं में लाएंगे तो फिर भी निलंबित कर दिए जाएंगे। यह उलझन भरी स्थिति है।"
योगी सरकार का लक्ष्य स्पष्ट है कि प्रदेश में छुट्टा जानवरों को गौशालाओं में भेजा जाए ताकि वे सड़कों पर न घूमें और न ही किसानों की फसलों को नुकसान पहुँचाएं। लेकिन इस नीति को लागू करने के क्रम में स्थानीय प्रशासन और ग्राम पंचायत सचिवों के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। सचिवों का कहना है कि प्रशासन की तरफ से सही मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है, और जो निर्देश दिए जा रहे हैं, वे व्यावहारिक नहीं हैं।
इस बीच, सीडीओ ने सचिवों के आरोपों को खारिज किया और कहा कि उन्हें केवल अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उनका यह भी कहना था कि सचिवों का काम सिर्फ जानवरों को गौशालाओं में भेजना नहीं, बल्कि ग्राम पंचायतों में अन्य विकास कार्यों को भी संचालित करना है। इस स्थिति को लेकर अब पंचायत सचिवों ने धरना जारी रखा है और वे सीडीओ से सही दिशा में समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।
ग्राम पंचायत सचिवों का मानना है कि यदि सीडीओ का यह रवैया जारी रहा तो प्रशासन और सचिवों के बीच दूरियाँ और भी बढ़ सकती हैं। साथ ही, यह विकास कार्यों में रुकावट का कारण भी बन सकता है। इस विवाद का समाधान कब होगा, यह देखना अब बाकी है।