आर्य समाज मूर्ति पूजा करता है – स्वामी रामेश्वर आनंद
स्वामी रामेश्वर आनंद ने आर्य समाज के 92वें वार्षिकोत्सव में मूर्ति पूजा पर अपनी बात स्पष्ट की, और महर्षि दयानंद के जीवन तथा उनके योगदान के बारे में बताया। कार्यक्रम में भजन, सम्मान और धार्मिक चर्चा हुई।

अम्बेडकर नगर: आर्य समाज लोहिया नगर के 92 वें वार्षिकोत्सव के चौथे दिन एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें नगर के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजकुमार सेठ मुख्य अतिथि रहे। कार्यक्रम का संचालन विजयपाल और ज्ञान प्रकाश आर्य ने किया, और इस अवसर पर कार्यक्रम की शुरुआत भजन उपदेशक रामनगर आर्य ने महर्षि दयानंद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए भजनों के माध्यम से आर्य समाज के सिद्धांतों को समझाया।
भजन उपदेशक अर्चना शास्त्री ने नारी सशक्तिकरण पर अपने भजनों के माध्यम से प्रकाश डाला और आर्य समाज द्वारा महिलाओं के लिए किए गए कार्यों के बारे में बताया। इसके बाद आचार्य रामेश्वर आनंद ने आर्य समाज के सिद्धांतों को स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर दिया। एक दर्शक ने पूछा था कि आर्य समाज मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करता है, तो आचार्य रामेश्वर आनंद ने स्पष्ट किया कि आर्य समाज मूर्ति पूजा का विरोध नहीं करता, बल्कि यह केवल उस पूजा का विरोध करता है जो मानव द्वारा बनाई गई मूर्तियों के माध्यम से की जाती है। उन्होंने कहा, "आर्य समाज ईश्वर के बनाए रूपों की पूजा करता है, जैसे कि घर में माता-पिता और वृद्धों की सेवा, जो वास्तव में मूर्ति पूजा के समान है।"
आचार्य रामेश्वर आनंद ने महर्षि दयानंद के जीवन और उनके द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए बताया कि महर्षि दयानंद ने देश के लिए अपार बलिदान दिया, कई बार जहर खाने के बावजूद, उन्होंने अपनी योग साधना से उसे परास्त किया। वे जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन करते रहे और कभी विवाह नहीं किया।
कार्यक्रम में भजन उपदेशक ऋषिपाल आर्य ने वेदों के महत्व पर चर्चा की और समाज में फैली कुरीतियों तथा हिंदू समाज द्वारा अपने धर्म के प्रति उदासीनता को उजागर किया। उन्होंने सभी से अपने घरों में वेद रखने और प्रतिदिन "सत्यार्थ प्रकाश" पढ़ने की अपील की, ताकि लोग अपने धर्म और समाज के प्रति जागरूक हो सकें।