संविधान सुरक्षित तो समाज सुरक्षित
प्रयागराज। बहुजन समाज के 85% लोग एससी एसटी ओबीसी न तो बौद्ध है,न ही अम्बेडकरवादी है और न मिशनरी है। क्योंकि नब्बे से पंचानबे प्रतिशत लोग मनुवादी है, मनुवादी इसलिए है क्योंकि वे मनुवाद की विचारधारा को फॉलो करते हैं। वर्ष में दो-चार बार नमो बुद्धाय जय भीम करके अपने आप को मिशनरी, अम्बेडकरवादी अथवा बौद्ध समझने का, बनने का प्रयास करते हैं जबकि वह बहुजन समाज के साथ धोखा करते हुए मनुवाद के पोषक विचारधारा को

अपनाते हुए बौद्ध नहीं जातिवादी है क्योंकि उसे चिंता नहीं है संविधान की,संविधान ही हमारी जान है अगर संविधान सुरक्षित है तो बहुजन समाज सुरक्षित है संविधान खतरे में आ गया तो बहुजन समाज खतरे में आ जाएगा।रोजगार चला गया,शिक्षा चली गई सुरक्षा चली गई लेकिन हम जातिवादी विचारधारा को नहीं छोड़ पा रहे। जातिवादी विचारधारा के हिसाब से चेहरा देखकर वोट करते हैं,बहुजन समाज को यह पता नहीं है कि वह इन छोटी-छोटी पार्टियों के तथाकथित राष्ट्रीय अध्यक्षों के प्रत्याशियों को अपनी जाति के हिसाब से वोट देकर क्या संविधान को बचा पाएंगे?
हमें ऐसी पार्टी को वोट करना है जो बौद्ध अम्बेडकरवादी व मिशनरी हो, उसकी पार्टी इस विचारधारा की हो और सत्तारूढ़ होने की गुणवत्ता हो शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा समानता के साथ रोजगार का लाभ दे सके अगर हम ऐसे छोटे भाइयों को जाति या अन्य प्रलोभन के हिसाब से वोट देकर सत्ता कभी नहीं पा सकते और न ही संविधान को बचा सकते है ऐसे लोग अपने आपको मनुवादियों के हाथ बेचकर अपना भला करेंगे। लेकिन प्रायः ऐसा देखने में आ रहा है की जय भीम नमो बुद्धाय और मिशनरी कार्यक्रम होते वक्त ऐसा लगता हैं कि जैसे भारत बौद्धमय हो गया है और चुनाव आते ही 6743 जातियों से अधिक पार्टियों में बटकर जाति के हिसाब से वोट करते हैं।
ऐसी मानसिकता से संविधान खतरे में है और रहेगा और हो सकता कि ऐसी बहुजन समाज की विचारधारा जाति के हिसाब से वोट करना दिमाग नहीं लगाता की सत्ता पर काबिज कौन पार्टी हो सकती है। संविधान को कौन बचा सकती है हम लोग सभी मिलकर उसको वोट करें जो जातिगत भावना से अलग होकर पार्टी भावना से अलग होकर वोट करें ताकि सत्ता हाथ में आए और हमारा सबसे पवित्र ग्रंथ संविधान को बचाया जा सके, बरना हमारे दिन बहुत बुरे आने वाले हैं।
डा.बाबासाहेब की वैचारिकी में जब बहुजन समाज भारत देश की शासक और हुक्मरान कौम रही है। कांशीराम की वैचारिकी में जिस समाज की सत्ता होती है उस समाज के साथ न अत्यचार होता है और न ही अन्याय होता है। तथागत बुद्ध की विचारधारा संत कबीर रैदास तक और कबीर रैदास की विचार ज्योतिबा फूले तक और फुले की वैचारिकी डा. बाबासाहेब अम्बेडकर से होते हुये बहुजन मसीहा कांशीराम तक आई है जिसे बहुजन समाज की आयरन लेडी बहन मायावती जी उसे आगे ले जाने का काम कर रही है। बहुजन महापुरूषों का सपना गैरराजनैतिक जड़ों को मजबूत करते हुये बसपा के द्वारा ही सम्भव है। इसलिए बहुजन समाज को बिना विखंडित हुए संगठित रूप से बसपा को ही मतदान कर देश का हुक्मरान बनना होगा।