विश्व मधुमक्खी दिवस-2025: "स्वीट क्रांति" को बल दे रहा केवीआईसी का हनी मिशन

केवीआईसी ने विश्व मधुमक्खी दिवस-2025 पर "स्वीट क्रांति" थीम के साथ मधुमक्खी पालन की उपलब्धियां साझा कीं।

विश्व मधुमक्खी दिवस-2025: "स्वीट क्रांति" को बल दे रहा केवीआईसी का हनी मिशन

लखनऊ : खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार ने मंगलवार को अपने विले पार्ले (पश्चिम), मुंबई स्थित केंद्रीय कार्यालय में ‘विश्व मधुमक्खी दिवस-2025’ के अवसर पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया।
इस वर्ष का आयोजन थीम – "प्रकृति से प्रेरित मधुमक्खी, सबके जीवन की पोषक" पर आधारित था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण "श्वेत क्रांति से स्वीट क्रांति" को मजबूती देता है।

इस अवसर पर महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों से आए मधुमक्खी पालक, वैज्ञानिक, प्रशिक्षु, छात्र, विशेषज्ञ एवं अधिकारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का उद्घाटन केवीआईसी अध्यक्ष मनोज कुमार ने सीईओ रूप राशि की उपस्थिति में किया।

मुख्य अतिथि मनोज कुमार ने कहा, “मधुमक्खियां न केवल शहद देती हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और परागण के ज़रिए हमारी कृषि और जीवनशैली को समृद्ध करती हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में शुरू किया गया हनी मिशन, आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनता जा रहा है।”

उन्होंने बताया कि केवीआईसी द्वारा अब तक 2.29 लाख मधुमक्खी बक्से और कॉलोनियां वितरित की गई हैं, जिससे करीब 20 हजार मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ और 325 करोड़ रुपये की आमदनी लाभार्थियों को हुई।
इसके अतिरिक्त, वित्त वर्ष 2024-25 में 25 करोड़ रुपये मूल्य का शहद विदेशों में निर्यात भी किया गया।

केवीआईसी की सीईओ रूप राशि ने कहा, “हनी मिशन केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक व्यापक आजीविका मॉडल है। इससे हज़ारों युवाओं, किसानों और महिलाओं को रोज़गार मिला है। केवीआईसी के हनी प्रोसेसिंग प्लांट्स और प्रशिक्षण केंद्रों ने इसे व्यावसायिक सफलता का मॉडल बना दिया है।”

कार्यक्रम में CBRTI, पुणे (केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान) की ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित किया गया। यह संस्थान 1962 से अब तक 50,000 से अधिक मधुमक्खी पालकों को आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग दे चुका है।

वैज्ञानिकों ने बताया कि मधुमक्खियां केवल शहद उत्पादन तक सीमित नहीं, बल्कि 75% खाद्य फसलों के परागण में सहायक हैं। यदि मधुमक्खियां न हों, तो 30% खाद्य फसलें और 90% जंगली पौधों की प्रजातियां संकट में आ सकती हैं।

कार्यक्रम के दौरान बच्चों द्वारा प्रस्तुत नाटक, कविता और निबंध ने आयोजन को जीवंत बना दिया। डिजिटल माध्यम से जुड़े लाभार्थियों ने अपनी सफलता की कहानियां साझा कीं।

इस कार्यक्रम ने स्पष्ट किया कि मधुमक्खी पालन न केवल रोज़गार, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और आहार सुरक्षा का भी प्रमुख आधार बन चुका है।