अकर्मण असहाय कुंठित हताश कमजोर विपक्ष
जिसके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घर पत्थर फेंकने का जज्बा नहीं रखते

अखिल सावंत
जनतंत्र की यह खूबसूरती है यहां पक्ष के साथ.साथ विपक्ष भी होता है सत्ता पक्ष की कमजोरी है वह मर्यादाओं और सीमाओं में बंधी रहती है विचार विमर्श मंत्रण उसकी भावी योजनाओं में अवरोध खड़ा करते हैं तो उसे हमेशा जनहित के प्रति सजग व चौकन्ना रहना पड़ता है तो दूसरी ओर विपक्ष हमेशा मुखर आक्रामक एवं क्रियाशील रहता है वह सत्ताधारियों की कमियों खामियों में अवसर को तलाशता रहता है। उसकी चिंता रहती है कि सत्ता में मदमस्त होकर कहीं सत्ताधारी जनहितों की अवहेलना तो नहीं कर रहे अगर उसे लगता है कि कर रहे हैं तो उसे तुरंत आईना दिखाते हैं एवं सत्ताधारियों का दिशा निर्देशन करते हैं इसलिए सत्ताधारियों के साथ विपक्ष को भी बराबर का सम्मान दिया जाता है या कहें उनसे अधिक सम्मान दिया जाता है।
हमारे देश में तो ये प्राचीन परम्परा रही हैं यहां विभिन्न मतों की विचारधाराओं के धर्म एवं पंथों के लोगों को समान दृष्टि प्रदान की गई है जहां वेदों के प्रति जन समुदाय नतमस्तक था तो वहीं चार्वाक अनुसरण करने वाले लोगों का भी एक बड़ा वर्ग था। बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के मानने वालों को उचित अवसर एवं मौका मिला। भारतीय सनातन संस्कृति का विपक्ष एवं मार्गदर्शन का काम ऋषि मुनि एवं आचार्य गुरु किया करते थे। जनता ही नहीं सत्ताधारी भी उनके प्रति नतमस्तक होते थे। बहुधा वह जंगलों वनों में कुटिया बनाकर संयमित जीवन जिया करते थे। समर्पण और त्याग ही उनकी शक्ति हुआ करती थी।
उसी देश में आज सत्ताधारी को आईना दिखाने व मार्गदर्शन करने वाले विपक्ष की भूमिका जो अदा कर रहे हैं उन्होंने संघर्ष के बजाय प्रतिक्षा को बेहतर विकल्प माना है। विपक्ष का कार्य जनहितों की मांग उठाने के बजाए सत्ता को छीनने मंसूबा ही रह गया है जनहितों के प्रति संघर्ष सड़कों से लेकर संसद तक कहीं नहीं दिखता।
यह सब देख कर स्वर्ग में बैठी महान आत्माएं जैसे जयप्रकाश नारायण राम मनोहर लोहिया अटल बिहारी बाजपेई चंद्रशेखर एवं जॉर्ज फर्नांडिस की आत्मा द्रवित होगी इन सभी नेताओं ने विपक्ष में रहकर अधिकतम अपना राजनीतिक कार्यकाल बिताया इनका सम्मान तत्कालीन प्रधानमंत्री से कम नहीं रहा। यह माननीय नेता सत्ताधारियों के चेहरे के बजाय उनकी कार्यशैली एवं व्यवस्था की कमियों को उजागर करते थे इन घोर विरोधियों के सामने सत्ताधारी भी नतमस्तक होते थे जैसे नेहरू जी लोहिया और जयप्रकाश के प्रति आदर का भाव रखते थे वहीं इंदिरा गांधी अटल जी के प्रति सम्मान रखती थी एवं उनके मार्ग दर्शन को ग्रहण करने में परहेज नहीं करती थी। अटल जी भी इंदिरा गांधी को बांग्लादेश में विजय के बाद दुर्गा की उपाधि से नवाज ने में हिचके नहीं थे।
इसका कारण इन नेताओं का राजनीतिक कैरियर बेदाग रहा है आज के विपक्षी नेता मोदी विरोध के नाम पर हताश निराश और गहरे अवसाद में डूबे हुए दिखते हैं। अपनी ऊल जलूल हरकतों से उपहास का पात्र बने बने संसद में तथा संसद के बाहर दिखते हैं। संघर्ष की मात्रा तो इनमें नाम मात्र की नहीं दिखती है व्यवस्था पर चोट कैसे करें इन नेताओं के सामने एक फिल्मी डायलॉग एकदम सटीक बैठता है जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते इसलिए शायद शरद पावर मायावती अखिलेश यादव अरविंद केजरीवाल राहुल गांधी एवं दूसरे नेता ट्विटर या सोशल मीडिया पर अपना विरोध दिखाते हैं लेकिन जनता के बीच अपना स्थान नहीं बना पाते हैं।
यह देश की भारतीय राजनीति की दुखद स्थिति है।मार्गदर्शन के अभाव में इनके समर्थक भी अवसाद में डूबे हुए हैं यही नहीं कुछ विरोधी राजनीतिक कार्यकर्ता तो देशहित के विरुद्ध कार्य करने में भी नहीं हिचकिचाते और ये कुव्यीक न्यूज़ खुलासे से स्पष्ट है कि जब विदेशी शक्तियां विदेशी मीडिया के माध्यम से हमारे देश के सत्ताधारी नेताओं के बारे में कुछ भ्रामक प्रचार करती हैं तो हमारे विपक्षी नेता हो हल्ला करते हैं एवं तालियां बजाते हैं यह तो अब उजागर हुआ है कि इनको खाद पानी तो चीन एवं ब्रिटेन जैसे देश के उद्योगपति देते हैं।
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