अंग्रेजी भाषा लोगों के प्रति बड़ा सम्मान

जहां में राजनीति के अलावा और भी बहुत कुछ है
बचपन से ही हमें जो माहौल मिला है उसी के चलते मानसिकता घर कर गई है की अंग्रेजी भाषा लोगों से हम कमतर हैं इस हीन भावना से ग्रस्त रहते थे। मिशनरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को 40 की भावना से देखते थे अंग्रेजी लोगों के सामने अपने को मूक महसूस करते थे। युवा होने पर मिशनरी स्कूल के बच्चों के साथ उठने बैठने के बाद एहसास किया कि वह बिल्कुल हमारे ही जैसे हैं हमारी ही जैसे हर मास के बने हुए हैं और हमारे ही जैसे खान-पान की शौक शैतानियां वह खेलकूद है।
कई बार तुलना करने से अपने को इस मिशनरी स्कूल से बेहतर व श्रेष्ठ पाया अलबत्ता क्लास बढ़ाने के बाद अंग्रेजी भाषा के प्रति रुचि बढ़ने लगी और यह अनुभव किया कि इस भाषा से घृणा करने के बजाय इसे प्रेम करना चाहिए क्योंकि ज्ञान विज्ञान साहित्य व दर्शन के लिए हिंदी भाषा की तुलना में इसमें प्रचुर पाठ सामग्री है। यह बात फिर उजागर हुई जब एक अंग्रेजी दैनिक के दो लेख पढ़ें। जबकि इस दौरान हिंदी दैनिक चुनाव सामग्री से भरे हुए थे नेताओं दावों व घोषणाओं की अंबर थी और उपलब्धियां का बखान था।
साहित्य अर्थशास्त्र कला संस्कृति की पाठ सामग्री अखबार से बाहर थी अलबत्ता आईपीएल के मातु की खबरें दी गई थी हास्यास्पद बात यह है कि संस्कृत अर्थ व साहित्य संवाददाता भी राजनीतिक रिपोर्टिंग करते दिख रहे थे उसी के संबंध में उन्होंने रिपोर्ट भी तैयार की थी लेकिन अंग्रेजी दैनिक लेख में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें ब्राजील की मॉडल का भारत में उनके द्वारा किए जा रहे हैं मॉडलिंग के विज्ञापनों की चर्चा की थी एक लेख में बताया गया कि ब्राजील की तमाम मॉडल भारत में आया करती हैं जबकि अभी तक हम पहले फुटबॉल व सांबा डांस के लिए ही ब्राजील को जानते थे। इसी प्रकार इसी प्रकार एक दूसरे लेख में लेखक द्वारा भूल भुलैया के बारे में चर्चा की गई थी जिसके बारे में कहा जाता है कि आसिफ धौला ने इसका निर्माण तब किया था जब शहर में आकर पड़ा हुआ था जिसकी निर्माण में अमीर गरीब दोनों ने सहयोग किया गरीब जो दीवार बनाते थे उसे अमीरों से तुड़वा दिया जाता था जिसके लिए पैसे दोनों को दिए जाते थे जिससे दोनों का चूल्हा जल सके क्योंकि अकल दोनों पर भारी था।
यह जानकारी तो तमाम पाठकों के पास होगी लेकिन अंग्रेजी लेखक ने इस लेख में आशिक दौलत की तुलना में बहुत चर्चित मनरेगा योजना से की है संभवत मनरेगा की सूत्रधारो ने इसकी सिख भूल भुलैया से ली होगी इसलिए हम कहते हैं कि हम जैसे लोगों के लिए चुनाव ही नहीं और भी बहुत कुछ है?
अखिल सावंत
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